Saturday, 19 January 2019

हॉस्टल लाइफ और वो रूममेट

मुद्दतों बाद जब तुम अपने बच्चे को स्नातक की पढ़ाई के लिए किसी विश्वविद्यालय भेजोगे तो उस समय आपके घर मे बीबी बच्चों के अलावा कोई नहीं होगा! आपका वो छात्रावास वाला रूममेट नही होगा जो सुबह सुबह जोर जोर से बोलबोलकर तुम्हारी नींद को डिस्टर्ब करता है, कभी कभी समाचारपत्र को जोर जोर से पढ़ने लगता है !  जो चुपके से तुम्हारा परफ्यूम लगाकर क्लॉस के लिए निकल जाता है! अरे भोपड़ी के तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ, अबे हरामखोर तुम भूल गए ना मुझे!
अरे हम वही हैं जो अपने अपने घर से सैकड़ों किमी दूर रहकर एक दूसरे का गार्जियन की तरह ख्याल रखते थे, इतना ज्यादा ख्याल रखते थे कि माई बाबू की कभी याद ही नहीं आती है! 
दो बजे वाली क्लॉस करने को बाद आता था तो बस एक ही सवाल पूछता है, "भाई, खाना खाया कि नहीं?" लेकिन भाई तो दगाबाज निकल जाता है और बोलता है, "हाँ, मैने खा लिया! तुम भी जल्दी बचाखुचा खा लो वरना मेस बन्द हो जायेगा! "
"यार हम लोग खाना खाने के बाद लाइट बन्द करके बिन्दास सोएंगे! उसके बाद पढ़ना है!"
"हाँ बे, मै भी बहुत थक गया हूँ!"
लाइट के लिए, दोस्तों के रूम पर आने के लिए और तो कभी कभी मोदी जी को लेकर थोड़ी बहुत नोकझोंक व विवाद तो रूममेट का धर्म है! रविवार के दिन कपड़े धोने के लिए रूममेट से हाथ पैर जोड़कर मिन्नतें करना, लेकिन रूममेट जैसा कठोर दिल वाला कोई नही है! क्योकि परफ्यूम का असर भी खतम हो गया है तो फिर मन ना होते हुए भी कपड़ा तो धोना ही पड़ेगा! रातों रातों घंटो घंटो अपनी कन्यामित्र से बतियाकर पार्टनर को जलाने का सुख बहुत खतरनाक होता है!
कभी कभी बहुत रात को वापस आने पर ये केवल रूममेट ही पूछ सकता है, "कहाँ थे बे अभी तक? कहीँ किसी लड़की वड़की का तो चक्कर नहीं? "
"नहीं यार लाइब्रेरी मे था, वो पीले सूट वाली लड़की जो थी, आज बहुत स्माइल दे रही थी, कसम से देखना कुछ दिनो मे पटा लूँगा! "
कुछ कही अनकही न जाने कितनी मुहब्बत की दास्तान जो केवल रूममेट तक की सीमित रह जाती थी, आगे नहीं बढ़ पाती है!
रात के 1 बज चुके होते हैं और सबलोग अपने अपने कामों मे मशगूल रहते हैं! ऐसा सन्नाटा कि सबकी दिल की आवाज भी साफ साफ सुनी जा रही थी! तभी तो मैने अचानक बोला "चलो बाहर चलते हैं चाय पीने!" "अबे तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी!"
चाहे जितनी भी काली रात हो, सर्द भरी रात हो, लेकिन  हॉस्टलों मे रहकर अगर रात मे बाहर की चाय नही पी तो खाक होस्टल मे रहे हैं! घर के सदस्यों से भी बढ़कर हमेशा दिलदार बनकर ख्याल रखने वाला ये रूममेट और कभी कभी तो इतना ख्याल रखता है कि बाथरूम मे कितने देर तक था, ये भी याद रहता है! कभी कभी सरदर्द का बहाना लेकर गर्ल्स हॉस्टल के चक्कर व वीटी पर चाय पीने जाना, हेल्थ सेंटर जाकर अपना वेट चेक करना व कभी कभी भौकाल मारते हुए अपने नंबर बढ़ाचढ़ाकर बताना इन सब मे बहुत कुछ सीखने को मिलता है!
इतने सारे दोस्त जिनका कोई ठिकाना नही, लेकिन सेमेस्टर क्लियर करने की कला, कम पैसे मे रेस्त्रां जाने की कला, गर्लफ्रेंड बनाने की टिप्स, किसी को मारने की प्लान और सबसे बढ़कर तो जब बर्थडे वाला दिन आता है तो जीपीएल करने का सबसे ढांसू गुप्त प्लान इसी रूममेट का रहता है! ऐसे लगता है कि सारे विलक्षण प्रतिभा की धनी हमारी मित्रमण्डली ही है! थ्री इडियट मूवी देखो तो लगता है कि रैंछोड़दास ने ऐक्टिंग हमी से ही सीखी होगी!

तब ये पल, ये अल्हड़पन, ये विशाल हरा भरा परिसर, ये बनारस का स्वाद कोसो दूर हो जायेगा, बस रह जायेंगी तो सिर्फ कुछ यादें और शायद कुछ फोटोग्राफ्स भी, शायद फोन नंबर भी न रहे! फेसबुक बाबा तो कब का छूट जायेंगे, नई नई जिम्मेवारियां जो इसकी जगह ले लेगी! तब इन पलों को, अपने दूसरे गार्जियन यानी रूममेट को याद करके केवल गम व बिछुड़न के दो आँसू टपका देना!

Thursday, 17 January 2019

प्रेम सँवेदना





जब मै तुम्हें देखती हूं तो लगता है कि सौंदर्य की परिभाषा तुम्हारे लिए ही बनी है! वैसे तो तुम्हारे शब्दों मे तुम्हारी सादगी को मैने पढ ली थी!
मगर तुम्हें देखा तो लगा, तुम पूर्ण रूपेण सादे हो,पूरी  बने ही नहीं हो! इतना साधारण  मैंने पहले कभी नहीं देखा था!
क्लास के अंदर जब आपको पहली बार देखी थी तो मै कई बार दौड़ कर बाथरूम गई  और मुँह धोकर, अपना बाल सही करके शीशा देखी और तुम्हें यह भी बता दूँ- "मेरे सारे बाल इतने काले नहीं हैं!  कुछ सफेद बाल हैं इनमें! कल ही कलर लगाया है!" अचानक ख़याल आया, क्यों मै इतना घबरा रही हूँ, उम्र के साथ आई चेहरे की झुर्रियों को क्यों छुपा रही हूँ ? और स्वत: चेहरा मुस्कुराहट से भर गया!
मेरे प्रेमिका बनने की चाह चली गई, तुम्हें देखकर! इतना ही नहीं, मैं एक पत्नी हूँ, यह भी भूल गई थी, जैसे ही तुमने मुझे देखा! एक ऐसा भी नज़र था वह, जिसने मुझे देखकर भी नहीं देखा। मुझे लगा मैं बस एक स्त्री हूँ, और एक पूरी स्त्री बनती चली गई वहीं तुम्हारे सामने! निस्संकोच!
तुम हो कि आते ही बोले, "कबीर की छवि को हम कभी किसी तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देखते हैं। यही है कबीर का निर्गुण!" मैं खड़ी की खड़ी रह गई भूल ही गई थी, मैं कौन हूँ! आते ही सीधी वही बात, जो करनी है, और कुछ भी नहीं। बच्चे करते हैं ऐसे तो,
फिर तो बातों में रात कर दी तुमने! घर जाना है, भूल गये! मैंने कहा आज यहीं रुक जाओ! तुमने तो औपचारिकता के लिए भी मना नहीं किया! वो घर पर नहीं हैं, और बच्चे दोनों होस्टल में रहते हैं, यह तो मुझे पता था न! तुमने तो ना कोई सवाल किया, ना संकोच जताया! जैसे मैंने कह दिया तो बस रुकना ही है!
खाना खाया तो, इतना भी नहीं कहा कि खाना अच्छा है! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! याद आया तो कह रही हूँ!
और रात को आकर मेरे बिस्तर पर ही लेट गये, मेरे साथ! मुझे लगा था कि तुम मुझे छुओगे, तुरन्त नहीं तो थोड़ी देर बातें करके, और तुम्हारे स्पर्श को मैं स्वीकार कर लूँगी, तुरन्त नहीं तो एक दो बार तुम्हारा हाथ हटा कर! क्योंकि यही अर्थ होता है, एक ही बिस्तर पर एक स्त्री और एक पुरुष के होने का, सोने का! प्रेमी-प्रेमिका हो जाना! पर तुम तो कबीर से चलकर उस अंधेरे में चले गए जहाँ से हम यहाँ आये हैं, उस ईशाणु तक पहुँच गये जिससे हम बने हैं! सुनते सुनते मेरी आँख लग गई!
मुझे तब का पता है जब तुम उठ कर गये, और ड्राईंग रूम में सोफे पर जा कर सो गये! प्रेमिका प्रेमी से जब लिपट कर सोती है तो सोने का उपक्रम करती है! पर स्त्री जब स्वयं से ही लिपट कर सोती है, तो सोती है! यह केवल तुम जान सकते हो!
प्रेम अधूरा होने का एहसास है! पिपासा है! मैं अब तृप्त हो चुकी हूँ, तुमसे मिलने के बाद!
चले गये हो तो भी क्या है! लो आओ, बिना तुम्हें छूए ही तुम्हें अपने वक्ष से लगा लेती हूँ, मेरे कल्पना-पुरुष!
अब मैं एक पूरी प्रेमिका हो गई हूँ!

तुम्हारी पूर्व और पूर्ण प्रेमिका! 😍