Thursday, 17 January 2019

प्रेम सँवेदना





जब मै तुम्हें देखती हूं तो लगता है कि सौंदर्य की परिभाषा तुम्हारे लिए ही बनी है! वैसे तो तुम्हारे शब्दों मे तुम्हारी सादगी को मैने पढ ली थी!
मगर तुम्हें देखा तो लगा, तुम पूर्ण रूपेण सादे हो,पूरी  बने ही नहीं हो! इतना साधारण  मैंने पहले कभी नहीं देखा था!
क्लास के अंदर जब आपको पहली बार देखी थी तो मै कई बार दौड़ कर बाथरूम गई  और मुँह धोकर, अपना बाल सही करके शीशा देखी और तुम्हें यह भी बता दूँ- "मेरे सारे बाल इतने काले नहीं हैं!  कुछ सफेद बाल हैं इनमें! कल ही कलर लगाया है!" अचानक ख़याल आया, क्यों मै इतना घबरा रही हूँ, उम्र के साथ आई चेहरे की झुर्रियों को क्यों छुपा रही हूँ ? और स्वत: चेहरा मुस्कुराहट से भर गया!
मेरे प्रेमिका बनने की चाह चली गई, तुम्हें देखकर! इतना ही नहीं, मैं एक पत्नी हूँ, यह भी भूल गई थी, जैसे ही तुमने मुझे देखा! एक ऐसा भी नज़र था वह, जिसने मुझे देखकर भी नहीं देखा। मुझे लगा मैं बस एक स्त्री हूँ, और एक पूरी स्त्री बनती चली गई वहीं तुम्हारे सामने! निस्संकोच!
तुम हो कि आते ही बोले, "कबीर की छवि को हम कभी किसी तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देखते हैं। यही है कबीर का निर्गुण!" मैं खड़ी की खड़ी रह गई भूल ही गई थी, मैं कौन हूँ! आते ही सीधी वही बात, जो करनी है, और कुछ भी नहीं। बच्चे करते हैं ऐसे तो,
फिर तो बातों में रात कर दी तुमने! घर जाना है, भूल गये! मैंने कहा आज यहीं रुक जाओ! तुमने तो औपचारिकता के लिए भी मना नहीं किया! वो घर पर नहीं हैं, और बच्चे दोनों होस्टल में रहते हैं, यह तो मुझे पता था न! तुमने तो ना कोई सवाल किया, ना संकोच जताया! जैसे मैंने कह दिया तो बस रुकना ही है!
खाना खाया तो, इतना भी नहीं कहा कि खाना अच्छा है! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! याद आया तो कह रही हूँ!
और रात को आकर मेरे बिस्तर पर ही लेट गये, मेरे साथ! मुझे लगा था कि तुम मुझे छुओगे, तुरन्त नहीं तो थोड़ी देर बातें करके, और तुम्हारे स्पर्श को मैं स्वीकार कर लूँगी, तुरन्त नहीं तो एक दो बार तुम्हारा हाथ हटा कर! क्योंकि यही अर्थ होता है, एक ही बिस्तर पर एक स्त्री और एक पुरुष के होने का, सोने का! प्रेमी-प्रेमिका हो जाना! पर तुम तो कबीर से चलकर उस अंधेरे में चले गए जहाँ से हम यहाँ आये हैं, उस ईशाणु तक पहुँच गये जिससे हम बने हैं! सुनते सुनते मेरी आँख लग गई!
मुझे तब का पता है जब तुम उठ कर गये, और ड्राईंग रूम में सोफे पर जा कर सो गये! प्रेमिका प्रेमी से जब लिपट कर सोती है तो सोने का उपक्रम करती है! पर स्त्री जब स्वयं से ही लिपट कर सोती है, तो सोती है! यह केवल तुम जान सकते हो!
प्रेम अधूरा होने का एहसास है! पिपासा है! मैं अब तृप्त हो चुकी हूँ, तुमसे मिलने के बाद!
चले गये हो तो भी क्या है! लो आओ, बिना तुम्हें छूए ही तुम्हें अपने वक्ष से लगा लेती हूँ, मेरे कल्पना-पुरुष!
अब मैं एक पूरी प्रेमिका हो गई हूँ!

तुम्हारी पूर्व और पूर्ण प्रेमिका! 😍

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