Saturday, 19 June 2021

Father's Day Special

This is for my contemporaries between 18 and 29 yrs. you are still lucky to have your father alive, healthy or not so healthy, rich or poor, with you or not, you are fortunate. Appreciate him always for whatever reason you may think of. No matter how useful or useless you think he is to you. Value what you have now. 


Make out time always to converse with your father, as most of us are no longer staying permanently with our parents. Ask questions, raise issues, bring up topics, discuss politics, marriage, finance, relationships, religion, asks for their experiences and stories, etc. Our fathers have a lot to tell from experience. You will discover that there are no new things. It is all old things happening to new people. Educated or not, You will have much to learn from them. 


Ask questions! Personal questions about his childhood, youth, his career, love life. Ask about stories or gossip you have heard about him. Ask about your family history and ties, about family members, village, town, and related stuff. Keep asking questions until he is pissed off because someday you will need a father to tell and clarify you, but may not find.


Your relationship with your dad must not be perfect to do this. He may have failed in his duties as a paternal family due to character and finance or whatever. But that is also a good point of conversation. Ask him why he is poor. what business he did, his financial decisions. Know the reason behind his seeming failure. Because it can happen to anybody. Do not make or repeat the mistakes of your father. Imitate their successes and strength and improve on them, learn from their failure. 


Most of us obviously love our mothers more than fathers, especially as kids. And fathers love is always underestimated. Perhaps not always as affectionate as the mothers. But we sadly realize the love after he is long gone worst still, never. Do not swallow single stories about you either of your parents. Hear from another party. We usually get the unintentional impression of being loved only by mothers and the fathers uncaring. Especially if you the old guy is not financially stable. Ask reasons for their actions. 


The situations are bound to differ in our families. But you can record your conversations with them, record your phone calls, take pictures and save them, keep their documents, know about their businesses and private lives. When you do not, you will realize how much you have lost when they are no more. You will painfully discover that outsiders, know much more about your fathers than you do. 


Your parents are fighting in your family - nuclear and joint, among kinsmen, in the village, in your hometown, cities, businesses, etc. So that you do not inherit the troubles you do not know about. Ask about and learn about his enemies and best friends, colleagues, his siblings, etc. Do not say it is their adult stuff. They were once a youth like you. It is just a matter of time. 


If you have never seen your parents quarrel even till this age, Ask your father, why you have never seen them quarrel for 23 years. You will at least learn their secret of peace. You can give them songs and movie CDs of their choice. I tell you most solemnly, you are adding to his days on earth by this simple act of respect.  We will all find ourselves in their shoes someday and you will have to recall what they did in their times.

Wednesday, 26 June 2019

अनकही सी प्रेम कहानी...

आज मै जिसकी कहने जा रहा हूँ वह वासंतिक मौसम से भी ज्यादा खुशगवार था! उसका नाम रवि घोष था! दुनिया की प्राचीनतम व धार्मिक नगरी बनारस मे वह सपनों की उड़ान भरने आया था!
करीब 21 फरवरी की सुबह थी! मानो पूर्व से सूरज गुलाब की वर्षा कर रहा हो! वह सफेद टीशर्ट और ब्लू जीन्स पहने एक नोटबुक, एक ब्लू रोरिटो पेन, हाथ की कलाई मे घड़ी पहनते हुए वह थीसिस लिखने चला जाता था! यह उसका प्रतिदिन का सफर था! शायद उसकी यह आदत हो गई थी! अपने रूटीन के हिसाब से काम करना उसको बहुत अच्छा लगता था!
दूसरी ओर अरोड़ा अंकल की बेटी अंजलि थी! कत्थई नयनो वाली, सामान्य कदकाठी, गोरा रंग ऊपर से लाल सूट पहने साधारण सी दिखने वाली! सूरत से ज्यादा सीरत कमाल की थी!
जहाँ तक मुझे याद है, इन दोनों की पहली मुलाकात सेंट्रल लाइब्रेरी की बगल मे शिवमंदिर के पास हुई थी!
रवि : इक्सक्यूज मी!
अंजलि : जी हाँ, बोलिए!
रवि : आप बायोटेक्नोलॉजी साइंस से मास्टर करती है ना!
अंजलि : हाँ आपको कैसे.....
रवि : मैने आपको देखा था! ऐक्चुअली मै मे रिसर्च करता हूँ! बहुत पहले मैने आपको देखा था! और इस शिवालय मे आपको लगभग प्रतिदिन देखता हूँ!
अंजलि : (थोड़ा मुस्कराते हुए) हाँ, मुझे यहाँ पर बहुत सुकून मिलता है!

दोनो मे कुछ कुछ दोस्ती हो गई थी! दोस्ती बस इतनी सी कि कभी कभार मिलने पर हाय-हैलो हो जाता था! ये बहुत अजीब बात है ना कि कैसे समय के साथ साथ चलने से जिन्दगी नए नए लोगों को देखना पसंद करती है! हम रुकना नही चाहते! नई जगह, नए लोग, नया मुकाम और हर पल नया पल मिलता है, जिसे हम संजो कर रख देना चाहते हैं!

दोनो की जिन्दगी का सिलसिला यूँ ही आहिस्ता आहिस्ता चल रहा था! रवि को पुराने गीत गुनगुनाने का बेहद खूबसूरत शौक था! वह बहुत ही तल्लीनता से अपनी इस शौक को पूरा करता था!
इस शौक के लिए वह रात्रिकाल मे घाट के किनारे गंगा जी के लहरों के सुरों के साथ अपने गीतों को सुर देता रहता था! पुराने संगीतकारों मे उसको किशोर कुमार बेहद पसंद थे!


 आज रविवार का दिन है!  अंजलि अपने दोस्तों के साथ अस्सी घाट घूमने आई थी! सुनीता, सुधा, राकेश, अमित व रजनी ये सब अंजलि के दोस्त थे! इत्तेफाक से रवि भी वही आया था ! रवि अंजलि को देखते ही पहचान गया! दोनों में हल्की सी बातचीत हुई,
 "हाय रवि, कैसे हो ?" अंजलि ने पूछा,

"हैलो अंजलि, मैं ठीक हूं!" रवि ने जवाब दिया!
अंजलि ने अपने दोस्तों से रवि की मुलाकात कराई! अंजलि के होठों पर एक हल्की सी मुस्कराहट व आंखों में निश्छलता के सुर फूट रहे थे!
"तुम्हारे दोस्त बहुत अच्छे हैं! इतने कम समय मे  तुमने इतने ढेर सारे दोस्त बना लिए जो बहुत ही काबिले तारीफ है!"
"यह तो मेरे अंदर का टैलेंट है रवि बाबू! कि मैं बहुत कम समय में लोगों को अपना बना लेती हूं!"

रवि बाबू, भले ही संबोधन दिखने मे साधारण सा हो लेकिन सभी सवालों के मुखर जवाब देने वाले रवि के मुख से एक भी प्रतिवाद के स्वर नहीं निकले! और रवि बाबू का संबोधन रवि के मन मे अंजलि को खास बना दिया! धीरे-धीरे इन दोनो की मुलाकातें, फिर दोस्ती का सिलसिला चलने लगा! रवि और अंजलि में एक चीज बहुत ही सामान्य थी! दोनों को ढेर सारी खुशियां उनके विरासत में मिली हुई थी! दोनों ने गम को बहुत निकट से नहीं देखा था! लेकिन रवि पुराने ख्यालातों का नया लड़का था! समय के चलने के साथ-साथ रवि ने जीवन के इस कड़वे सच को महसूस किया था और दूसरों के जीने में अनुभव प्राप्त करने वाला इंसान बन गया था! रवि की जिंदगी में काफी व्यावहारिकता और यथार्थ था! वह पिछले कुछ समय से बहुत ही गंभीर, भावनात्मक और जज्बाती बन गया था! कभी-कभी तो उसे ऐसा लगता था कि किशोर कुमार के संगीत के सुर उसके व्यक्तित्व के लिए ही सधे हुए हैं!

विश्वविद्यालय में वार्षिक महोत्सव का पर्व था! चारों ओर उल्लासपूर्ण माहौल था! लोग सर धज कर रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर युवक और युवतिओं ने माहौल को बना दिया था! खुशनुमा सुबह से पर्व की शुरुआत होने वाली थी! कुलपति साहब फीता काटकर और महामना जी का विधि विधान से पूजन करके पर्व की औपचारिक शुरुआत की थी! अंजलि अपने दोस्तों के साथ आई थी! सभी लोग खूब सज धज कर आए हुए थे लेकिन अंजलि कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी! उसने बाल खुले रखे थे और एक धूप का चश्मा लगाया था! दिल्ली रन की हाई हील सेंडल काली लेगी अब महेंद्र खुलती बौद्ध भी यादव खूबसूरत लग रही थी लवी की निगाहें अंजलि पर ठहर गई थी!  नीली जींस पैंट और सफेद टी-शर्ट में रवि भी खूब खिला रहा था! उसका गोरा और लाल चेहरा, मासूमियत और सलोनी सूरत उसके वेशभूषा में बहुत जँच रहा था! दोनों ने देखते ही हाय हैलो किया!
"हाय रवि, कैसे हो आओ? आओ, तुमको अपने एक खास दोस्त से मिल जाती हूं!"
"हां हां बिल्कुल!"
 "ये संजय है, जो मेरे लिए बहुत खास है! इनका नोएडा मे एक बिजनेस है और ये यहां से डिप्लोमा के सिलसिले से आये हैं! इन्हीं के साथ आज मेरा कपल डांस है!" संजय की ओर इशारा करके अंजलि ने कहा!
 तभी एक अपरिचित व भारी आवाज गूंजती है, "अच्छा आप है रवि भाई, अंजलि ने तो आपके बारे में बहुत कुछ बताया है!" संजय ने कहा!
 तभी रवि अंजलि की और देखता है और अंजलि की निगाह संजय की ओर टिकी थी! रवि ने उन दोनों की दिल की बात को पढ़ लिया था! रवि भले ही कम ऊंचाइयाँ देखी हो लेकिन वह बहुत गम्भीर इंसान है! सफलतापूर्वक दोनों का कपल डांस होता है! बेतहाशा तालियों की गड़गड़ाहट से उन दोनों की प्रशंसा होती है! लेकिन इस भीड़ भाड़ में रवि का दिल कहीं अकेला सा हो गया! उसकी नजर केवल अंजलि पर टिकी थी! डांस कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही रवि वहां से उठकर चला आया! दूसरे दिन सुबह कहीं नहीं गया! दिन भर रूम में बैठा और दोस्तों से जरा सी बातचीत नहीं हुई! उसके मन में एक टीस थी, कुछ उजागर न कर पाने की! कभी-कभी तो खुद पर क्रोध भी आने लगता था! उसके लिए अंजलि के पलक का एक आंसू भी बहुत कीमती था, कोहिनूर से भी! अक्सर अंजलि की उदासी उसको पागल बना देती थी! वह उसके लिए बहुत कुछ कर सकता था! पता नहीं कैसा रिश्ता था, उसको खुद को भी नहीं पता! लेकिन आज पहली बार अंजलि की मुस्कुराहट रवि को परेशानी में डाल दिया! शाम को 5:00 बज गए! वह लाइब्रेरी पहुंचकर अपनी अधूरी थीसिस को लिखने लगा!  करीब 1 घंटे बाद अंजलि का टैक्स मैसेज आया,
  "रवि तुम कहाँ हों?"
  "लाइब्रेरी में " रवि ने रिप्लाइ दिया!
  "यार रवि, मै आज बहुत खुश हूं! पता है क्यों?"
  "क्यों?"
  "तुम तो कल दिखे ही नही थे! हमे बेस्ट कपल डांसर का इनाम मिला था! लोगों को मेरी जोड़ी बहुत पसंद आई थी! संजय मुझे बहुत प्यार करता है! कल बहुत रोमांटिक अन्दाज़ मे मुझे प्रपोज भी किया था! हम दोनों तुमको पार्टी देना चाहते हैं! आओ!"
  "देखो यार, मै अपनी अधूरी थीसिस पूरा कर रहा हूँ!"
  "ठीक है! लेकिन जब खाली हो तो जरूर मिलना!"
  "ओके, तुम्हें ढेर सारी बधाइयाँ!" एक स्माइली देते हुए रवि ने रिप्लाइ किया!


अंजलि को रवि का व्यवहार थोड़ा अजीब लगा! जहाँ एक पुकार मात्र से रवि दौड़ता चला आता था, वही आज इस खुशी के अवसर पर उसको साफ मना कर दे रहा है! लेकिन वह रवि से मिलकर बात करना चाहती थी! कुछ दिन तक दोनों मे कोई मुलाक़ात नही हुई! अंजलि और संजय का इश्क़ परवान चढ़ने लगा! दोनों दिनभर कैम्पस, कैफ़ेटेरिया, लाइब्रेरी व फ्रूट जूस शॉप तक घूमा करते थे! कहते हैं कि हर इंसान अपनी अपनी प्रेम कहानी का हीरो और हीरोइन होता है! हम सब अपने आपको बखूबी समझते हैं! अंजलि बहुत खुश रहने लगी थी! वह अपने आपको बहुत ही खुशनसीब प्रेमिका मानती थी! ऐसे लोग अपने पार्टनर से बहुत कुछ उम्मीद करने लगते हैं! अंत मे निराशा ही हाथ लगती है और फिर इश्क ही बदनाम होता है! अंजलि के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला था!

अँजलि और रवि की भी बीच बीच मे मुलाकात हो जाती थी! लेकिन रवि अनमने ढंग से ही मिलता था! रवि एक नकली मुस्कुराहट के साथ अंजलि को अपनी खुशी दिखाता रहता था कि सब कुछ ठीक ठाक है! एक दिन अँजलि को बुखार आया था! 106 फॉरेन्हाइट बुखार था! उसके शरीर के अंग मानो टूटकर धधक रहे थे! आँखे ऐसी लाल थी कि मानो किसी ने अंगारे भर दिए हो! उसकी सहेलियां सुधा और सुनीता ने उसको तत्काल आपातकाल कक्ष मे ले आई! डॉक्टर ने कहा, "ज्यादा गर्मी का असर है! ऐसी गर्मी मे ज्यादा तनाव शरीर के लिए हानिकारक होता है!" अंजलि ने सुधा से संजय को बुलाने को कहा! संजय का फोन नहीं मिला!

अगले दिन संजय मिला और बोला, "ओ माई डियर अंजलि, व्हाट हैपेंड?"
"पहले तुम बताओ कि तुम फोन क्यों नही उठाए! मुझे बहुत अजीब फील होता है तुम्हारे बिना!"
"सॉरी यार, मै बिजी था! तुम जो सजा दोगी मुझे सब मंजूर है!"
"मजाक मत करो, मै तुम्हारे बिना अपनी कल्पना भा नही कर सकती हूँ! देखो तुम्हारे आने से मेरी तबीयत भी हरी हो गई!"
इस तरह संजय और अंजलि के दिन बीत रहे थे! जब इंसान प्यार मे होता है तो समय की रफ्तार बहुत तेज चलती है! अंजलि के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था! लेकिन कहते है कि किसी भी चीज की नशा बहुत खराब होती है, चाहे प्यार ही क्यों न हो!
   अंजलि के जिंदगी में एक चक्रवात आने वाला था! दोपहर के 3:00 बज रहे थे! घरव और बाहर चारों तरफ सन्नाटा था! भयंकर लब चल रहा था! सुधा और अंजलि रूम में बैठे थे! अचानक किसी ने दरवाजे को खटखटाया! सुधा ने दौड़ कर दरवाजा खोला, सामने डाकिया खड़ा था! उसने अंजलि को नाम लेकर चिट्ठी पकड़ाई! चिट्ठी संजय की थी! दोनों ने ठंडा पानी पिला कर डाकिया को विदा किया! जैसे ही अंजलि ने लिफाफा खोला, उसको आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा! उसके पैरों तले जमीन खिसक गई! वाह सूख कर गिर पड़ी! चिट्ठी में लिखा था....
   " मैं संजय बहुत ही सोच समझ कर लिख रहा हूं कि मैं अब तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं! मेरी सगाई गायत्री के साथ तय हो गई है और मैंने तुम्हें बताया नहीं था! मैं बनारस एक डिप्लोमा के सिलसिले से आया था और तुमसे मुलाकात हो गई! मुझे टाइमपास करना था इसलिए तुम्हारी भावनाओं को मैं गंभीरता से नहीं लिया और मैं वापस नोएडा आ गया हूं! तुम मुझे कॉल मैसेज और किसी भी प्रकार से संपर्क करने की कोशिश मत करना! म्मीद है कुछ दिन में तुम भी मुझे भूल जाओगी!
   संजय!"
 
सुधा भी यह सब देखकर हतप्रभ रह गई! अंजलि के आँखो से एक विशाल अश्रुधारा फूट पड़ी! उसे कुछ सूझ ही नही रहा था!
सुधा ने बोला, "ज़्यादा स्ट्रेस न लेने का! अगर तुम टेंशन लेगी तो तुम्हारा हैल्थ नही सुघरेगा! बी बोल्ड ऐंड हैव पैशेंस! गॉड विल हेल्प यू डेफिनेटली!" कोलकाता निवासी सुधा एक बोल्ड लड़की थी! इसके अनुसार दुष्ट के साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार ही करना चाहिए! इसीलिए कॉलेज के कुछ लड़कों से इसकी बनती नही थी! सुधा कभी भी कुछ बातें गम्भीरता से नही लेती थी! वो संजय पर बहुत गुस्सा रही थी!

इस चक्रवात ने अँजलि की जिन्दगी को पूरी तरह बदल दिया! करोड़ों तूफान उसके दिल को घेर रहे थे! एक क्षण भी उसे चैन नही! उसके दिमाग मे बस वही चिट्ठी पर लिखी हुई बात गूंज रही थी! उसने संजय से सम्पर्क साधने का बहुत प्रयास किया लेकिन कोई कामयाबी नही मिली! अपने दोस्तों की मदद से उसने दिए गए पते पर नोएडा मे संजय के बारे मे पता किया, लेकिन यहां भी वो असफल रही! आँसू उसके दिल को चीर रहे थे! उसे दिन रात का पता नही था! अन्ततः वह बेहोश हो गई!

कुछ समय बाद उसे होश आया! अंजलि ने आँखे खोली! सामने रवि, सुधा, सुनीता और कई सारे लोग थे! रवि की आँखो मे वही मासूमियत और गम्भीरता थी जो अंजलि ने पहली नजर मे देखी थी! लेकिन अंजलि की आँखो मे उदासी के स्वर फूट रहे थे!  उसका गोरा बदन पीला पड़ गया था! उसके आंखो से अश्रुधारा फूटकर उसके पीले पड़ चुके गालों से होते हुए रवि के पैर को भिगो रहे थे! सुधा ने रवि को सारी  बात बता दिया था! अन्दर ही अन्दर अंजलि शर्मिंदा भी हो रही थी! क्योंकि आज उसके दिल के आगे उसकी आत्मा हार चुकी थी! रवि अपने हाथों से उसके बालों को सहेजते हुए उसके आँसुओ को पोछ रहा था! रवि ने अंजलि से बात करने की कोशिश की, अंजलि ने बहुत अनमने ढंग से हाँ हूँ मे जवाब दिया!

अंजलि किसी से भी बात करने के मूड मे नही थी, खुद से भी! शायद अन्दर का तूफान उसके अस्तित्व पर भारी पड़ गया था! रवि ने साथ मे लाए कुछ फल अंजलि को खिलाया और वहाँ से चला गया! उसने चुलबुली स्वभाव की अंजलि को आज पहली बार इतना असहाय देखा! उसको अंजलि पर तरस आ रहा था! वो उसके लिए बहुत कुछ करना चाह रहा था! रवि के मन पर हावी उदासी धीरे धीरे खतम हो रही थी! अंजलि कभी कभी संजय से बात करने को व्याकुल हो उठती थी! जिन्दगी के इस सफर मे जहाँ प्यार हार जाता है, मुस्कानें हार जाती है और आँसू हार जाते हैं वही मासूमियत और दोस्ती जीत जाते हैं!

अगस्त का महीना था! अंजलि की जिन्दगी ढीरे ढीरे ढर्रे पर आ रही थी! शाम का समय और सूरज ढलने वाला था! मोहित, रवि, सुधा, अंजलि और सुनीता सबलोग इकट्ठा थे! हँसी मजाक और अपने अपने कैरियर की बातें चल रही थी, लेकिन रवि और अंजलि शांत थे! रवि की नजरें अंजलि पर टिकी थी, लेकिन पीला मखमल सूट व जीन्स पहने, रूखे चिपटे बाल और लाल सी आँख लिए अंजलि की नजरें जमीन को एकटक घूर रही थी! एक महीने का रोना धोना और आँसुओ ने अंजलि के चेहरे को एकदम गिरा दिया था! न ताजगी था, न ही यौवन, न सुकुमारता थी और न ही कठोरता! आवाज भी कमजोर हो गई थी! सुधा ने रवि की ओर देखकर बात करने का इशारा किया! रवि ने चेहरे पर एक नकली मुस्कुराहट दिखाते हुए कहा, "अगले मन्थ मे मेरी थीसिस सब्मिट हो जाएगी, फिर मै शायद यहाँ से चला जाऊँ........... "

अंजलि को छोड़कर सब लोगों ने रवि को एक ही सुर मे बधाइयाँ दी! अंजलि की निगाहें एकटक रवि पर टिकी थी! शायद उन दोनों मे एक अनबूझा सा रिश्ता पनप रहा था! अचानक अंजलि को देखते हुए रवि ने कहा, "तुमको यार कुछ दिनों के लिए घर चले जाना चाहिए! शायद तुम्हारा मन बदल जाए और दिल भी लग जाए!"

"नही यार, मै अब अपना पूरा ध्यान कैरियर पर फोकस करना चाहती हूँ! ऐसे लोगों की वजह से मै अपना भविष्य अंधेरे मे नही झोंक सकती, लेकिन मै यहाँ से ऊब गई हूँ! कुछ दिनों बाद फार्माक्यूटिकल कंपनियां यहां पर प्लेसमेंट लेने आने वाली है! मै अपने आपको प्लेसमेंट के लिए तैयार करूंगी, यही मेरी भविष्य की योजना है!"
सुधा ने कहा, "वाह रे अंजलि! तूने क्या प्लान बनाया! उस सेल्फिश पीस से ब्रेकअप होने से तेरा दिमाग और खुल गया!" सुधा की बात सुनकर सब हँसने लगे, अंजलि को मुस्कुराता देखकर रवि भी मुस्कुराने लगा! अचानक मुस्कराते रवि की आँखो मे एक पतंगा घुस गया! वह आँखे भीचने लगा!
"क्या हुआ?" सुधा ने पूछा!
"शायद आँख मे कुछ चला गया....!"
अचानक अंजलि ने अपने पीले मखमल के सूट को उंगली मे गुरमेटकर बाँधा और गरम साँस फूंककर रवि के आँख पर रखा! ऐसा उसने दो से तीन बार किया!
"बस ठीक हो गया!" रवि ने कहा!
उसकी आँखें लाल हो गई थी और आँसू आ गए!
उन दिनों जीवन और प्रेम बहुत सरल था, कोई दिखावा नहीं था यह सिर्फ विशुद्ध प्रेम था। उन दोनो ने कभी गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड के रूप में एक-दूसरे के साथ व्यवहार नहीं किया! लेकिन रूह से रूह तक एक रिश्ता पनप चुका था! अंजलि और रवि के दिल मे एक दूसरे के प्रति इज्जत और बढ़ गई! वह संजय को लगभग भूल ही गई थी!

आज रवि के थीसिस के सबमिशन का दिन था! हॉल मे सारी तैयारियां हो रही थी! आज उसे डॉक्टर की उपाधि मिलने वाली थी.... ड्रॉ़ रवि घोष!
सीनियर प्रोफेसर के उपस्थिति मे  Viva Voice द्वारा अपनी थीसिस सबमिशन की प्रक्रिया को खतम किया! शामतक रवि को बधाइयाँ देने वालों का तांता लग गया! अंजलि ने भी फोन करके रवि को बधाई दी! पीएचडी खत्म होने की खुशी मे रवि ने अपने मित्रगणों, दोस्तों और गुरुजनों को एक रेस्त्रां मे डिनर पार्टी के लिए आमन्त्रित किया! रवि और अंजलि बगल मे बैठे थे! दोनों बहुत खुश थे! गुलाबी साड़ी मे अंजलि बेहद खूबसूरत लग रही थी! आज रवि ने अंजलि को पहली बार साड़ी मे देखा था! डिनर के बाद सभी लोगों ने रवि को बधाइयाँ दी और उज्ज्वल भविष्य की कामना की!

धीरे धीरे रवि और अंजलि दोनों एक दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे! रवि ने अंजलि को प्लेसमेंट के लिए तैयार करना शुरू कर दिया! व्यक्तित्व परीक्षण और पर्सनल इंटरव्यू के गुर देने के साथ साथ वो उसे खुश रहना भी सिखा रहा था! वो अपने सारे अनुभवों को अंजलि के अंदर उड़ेल देना चाहता था! अगले सप्ताह सोमवार को अंजलि का इंटरव्यू था! इंटरव्यू के दिन पैनल बोर्ड के सदस्यों द्वारा शाम तक रिज़ल्ट घोषित किया जाना था! उसके दिल मे घबराहट थी लेकिन रवि को अंजलि के ऊपर पूरा भरोसा था! रिजल्ट की घोषणा होते ही अंजलि ने रवि से अपनी खुशी इजहार किया! आज उसकी कैरियर की दौड़ पूरी हो चुकी थी! वह बहुत खुश थी! अंजलि को उसके मनमुताबिक फार्मा कंपनी मे जॉब मिल चुकी थी!

कल अंजलि जाने वाली थी! जाने से पहले वो पूरे बनारस को महसूस कर लेना चाहती थी! रवि अस्सी घाट की सीढ़ियों पर अकेला बैठा था! रिमझिम बूंदो के साथ हल्की बारिश हो रही थी! बारिश की बूंदे लहरों मे समा रही थी! वह गंगा की लहरों को समेट लेना चाहता था! कभी कभी वह लहरों के सहारे अपने अंदर झांक रहा था! उसे लग रहा था कि वह पहले से कुछ कठोर हो गया है, वह अंजलि के प्रति बहुत गंभीर हो गया है! वह अंजलि के विश्वास को जीत चुका था! वह ऐसे ही सुंदर ख्यालों मे डूबा था कि अंजलि वहां आ गई! वह अपनी कुहनी को रवि के कंधे का सहारा देकर खड़ी हो गई! रवि मुस्कुरा उठा! उसने कहा,
"तुम इतना ऊंचा उड़ना कि आसमान छू लेना!"
"जरूरत नही है!"
"अरे ऐसा क्यो कह रही हो?"
"आसमान छूने की जरूरत नही! आसमान मेरे सामने खुद झुकता है!"
"अरे वाह अभी से इतना घमंड! जब कल ज्वानिंग होगी तब क्या होगा?"
"अब इसमे घमंड वाली क्या बात! अच्छा एक किस दो!"
"अरे पगली! अचानक से ये क्या?"
"अरे यार! लड़की हम है और शरमा तुम रहे हो! इतना शरम कहां से लाते हो?"

फिर रवि ने अपने होंठो को उसके माथे पर टिका दिया और घाट थम सा गया!

"फिर अंजलि बोली, "देखो मेरा आसमान मुझे चूमने के लिए मेरे सामने झुकता है!"

अंजलि के इतना कहने पर रवि मुस्कुरा उठा और साथ ही माँ गंगा की लहरें भी मुस्कुरा उठी!


हल्की हल्की रिमझिम बारिश और काले बादल के बीच सूरज की सुनहरी किरणें रवि और अंजलि के चेहरे को प्रतिबिंबित कर रही थी! एक अजीब सी मुस्कान थी! ऐसी मुस्कान जैसे बादल भरे काले घुमड़ते आसमान को देखकर अपने सुनहरे पंखो को फैलाकर दुनिया की परवाह किए बिना मोर मुस्कुरा देता है! 

Wednesday, 1 May 2019

अन्तर्मुखी जीवन

अंतर्मुखी व्यक्ति अपनी ही दुनिया में रहना पसंद करते हैं और इन्हें लोगों से मिलना जुलना खास पसंद नहीं होता! इनकी मनोदशा को समझना आसान नहीं होता, एक पल यह बहुत खुश रहेंगे और दूसरे ही पल उदास भी हो सकते हैं। कभी-कभी यह अपनी बात खुलकर लोगों के सामने रख पाते हैं और कभी-कभी बोलने में असहज हो जाते हैं!
आत्मविश्वास की प्रचुरता होने के साथ साथ, अधिकांशत: ऐसे लोग स्मृति के तेज होते हैं, क्योकि इनके कम बोलने की वजह से विचारों की शक्ति बढ़ जाती हैं और वो अधिक परिपक्व होते हैं, इनकी निर्णय लेने की क्षमता अधिक होती हैं! ये बहिर्मुखी लोगों की अपेक्षा अधिक सशक्त होते हैं!

उन्हें खुश रहने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं होती वह स्वयं के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं! ऐसे लोग स्वयं के आदर्श होते हैं! चिंतनशील और मननशील होना इनकी एक खूबी होती है!
अंतर्मुखी लोंगों में बात की गहराई तक पहुँचने की समझ अधिक और तीव्र होती हैं! ये लोगों के हाव-भाव भी पढ़ने में समर्थ होते हैं! हर बात पर प्रतिक्रिया न देने के कारण इनका चित्त शांत प्रकार का होता है!
कभी कभी हमारा समाज अन्तर्मुखी और शर्मीलापन को एक ही समझ लेता है जबकि ये सरासर गलत होता है! शर्मीले लोग "ये लोग क्या कहेंगे" प्रकार ज्यादा सोचने वाले व्यक्ति होते है इनको दूसरो का साथ और समाजिक जीवन पसंद तो होता है लेकिन अधिक शर्मीलेपन के कारण न ही सामाजिक जीवन ही ढंग से जी पाते है न ही अन्तर्मुखी जीवन!

Saturday, 30 March 2019

प्यार का मेथमेटिक्स



ये बहुत अजीब लेकिन सच बात है कि ख़ुद से प्यार में पड़ने से पहले हमें कई ऐसे लोगों से प्यार करना पड़ता है, जो हमें उतना प्यार नहीं करते जितना हम उन्हें करते हैं, या फिर हमारी क़द्र नहीं करते!
ख़ुद से प्यार कर पाने की मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता हमेशा कुछ नाकामियों से होकर गुज़रता है! ऐसा इसलिए है क्योंकि एक इंसान होने के नाते बचपन से हमें सिखाया जाता है, दूसरे इंसानों से, जानवरों से, पेड़-पौधों से प्यार करना! ख़ुद से प्यार करना कोई नहीं सिखाता, वो हमें ज़िंदग़ी ही सिखाती है!
बचपन में जब हम परीकथाएँ पढ़ते हैं और जवानी में जब हम रूमानी फ़िल्में देखते हैं, तो सोचने लगते हैं कि हमारी ज़िंदग़ी भी ऐसी हो तो क्या मज़ा हो! और हम निकल पड़ते हैं, अपनी ज़िंदग़ी वैसी बनाने को! हम प्यार करते हैं! कॉलेज लाइफ मे आकर अपनी सारी सीमाएँ तोड़ते हैं! उस इंसान की उंगली पकड़कर सारी दुनिया देख जाना चाहते हैं! उसकी नज़र से ज़िंदग़ी देखना हमें अच्छा लगता है! हम ये भूल जाते हैं कि वो इंसान भी अपने सफ़र में है! वो भी अपने लिए एक परीकथा, एक शानदार प्रेमकहानी बनाने की कोशिश कर रहा है! जब हम उसके सामने वो बन जाते हैं, जो हम नहीं हैं, तो ज़ाहिर तौर पर हम अपना बेहतरीन उसे नहीं दे पाते! और फिर हम उसके लिए बेस्ट नहीं रहते और वो इंसान अपने लिए नया रास्ता तलाश करने लगता है!
हम फिर प्यार करते हैं! इस बार हम ठानकर बैठे होते हैं कि ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जो हमारे व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता! हम उस इंसान को अपना वो हिस्सा देते हैं, जो आजतक अपने किसी क़रीबी को न दिया हो! हम अपनी आत्मा खोलकर उसके सामने रख देते हैं! वो इस बात को समझता है कि हम कितने मासूम और नाज़ुक हैं! वो हमारी कमज़ोरियों को समझता है और एक इंसान होने के नाते जाने-अनजाने में उनका फ़ायदा भी उठा जाता है! हम इस इश्क़ में मिला दर्द सहते हैं, सहते जाते हैं क्योंकि हमें लगता है कि दर्द से बनने वाली प्रेमकथा ही शायद सबसे अच्छी प्रेमकथा होती है! जब दर्द सीमा से बाहर हो जाता है, तो हम फट पड़ते हैं! इस बार हम तय करते हैं, अब किसी को मौका नहीं देना ख़ुद को दुःख पहुँचाने का! हम अब अकेले अपना सफ़र तय करना चाहते हैं!
हम फिर से प्यार करते हैं! इस बार वाला प्यार बहुत सतर्क होकर किया जाता है! अब तक हम ख़ुद को जान चुके होते हैं और लोगों को भी! हम जानते हैं कि हम भावनात्मक रूप से कितने कमज़ोर हो सकते हैं और दूसरा इंसान किस हद तक हमारा फ़ायदा उठा सकता है, हमारी भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है! हम डरकर प्यार करते हैं, हम ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा प्रयास करते हैं और यहाँ हमें एहसास होता है कि हम दूसरों से प्यार करने की ताक़त कहीं खो चुके हैं! वो इंसान हमें पसंद है, हम उसे बाकी लोगों से दो दर्जे ऊपर चढ़ाकर उससे व्यवहार करते हैं! वो इंसान भी अपना सफ़र तय करके आया है, उसने भी राह के लगभग वो सभी पत्थर देखे हैं, जो हमने देखे हैं! हो सकता है, वो हमसे कहीं आगे हो! हम भी ख़ुद को बचाए रखने के लिए अपना सौ प्रतिशत उसे नहीं देना चाहते, इसलिए उसे भी कभी पूरी तरह ये एहसास नहीं हो पाता कि वो हमारे लिए क्या है! वो उस लिहाज़ से हमारी क़द्र नहीं कर पाता और ये प्रेमकहानी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाती है!
इस सब के बाद हमें अपनी एहमियत का एहसास होता है! हमें अब पता चलता है कि हमारी परीकथा कहीं हमारे अंदर ही मौजूद है! हम ही अपनी प्रेमकहानी कहानी के हीरो और हीरोइन हैं! हम ही अपने आप को समझेंगे! हम ही ख़ुद को ख़ास महसूस कराएँगे। हम ही अपना जीवनभर साथ निभाएँगे! क्योंकि दूसरों से उम्मीदें लगाकर और निराशा पाकर हम देख चुके हैं! अब ख़ुद से उम्मीदें लगाते हैं, ख़ुद को सशक्त करते हैं, ख़ुद को एहमियत देते हैं और अंत में ख़ुद से प्यार कर जाते हैं!

हम, 21वीँ सदी और ये रिश्ते

इस आर्टिकल को पढ़ने से पहले आपको दो वादा करना पड़ेगा.....
1. ख़ुद को ख़ुश रखने के लिए, या  अपनी मानसिक शांति बनाए रखने के लिए आप हमेशा वो लम्हा याद करेंगे जब आप बेहद खुश थे!
2. आज से आप खुद को कभी धोखा नही देंगे, खुद से कभी झूठ नही बोलेंगे!


चलिए चल पड़ते हैं जिन्दगी के सफर मे,
निकल पड़ते हैं हम एक जिन्दा लाश की तरह...!

हम लोग अक्सर ये बातें करते हैं कि मेरी उसकी नही बनती, हम दोनों के सोच मे जमीं आसमाँ का अंतर है! लेकिन क्या होगा अगर ये जिन्दगी मे सबकुछ परफेक्ट हो जाए, मतलब जो हम सोचे वही हो, तो ब्रदर जीने का मजा ही बिखर जायेगा! ये जिन्दगी बोरिंग सी हो जाएगी! ठीक वैसे जैसे आपके पसंदीदा रसगुल्ला को आप रोज हर समय खा रहे हैं!  ये जो दरारें व कमियां होती हैं ना, वाकई यही हमारी जिन्दगी की खूबसूरती है! यही हमारे जीने की वजह है, यही हमे बेहतर ख्वाब दिखलाती है!
इसलिए कभी कभी अगर फालतू की नौटंकी भी हो जाए तो नाराज नही होते! ऐसे ही कुछ दरारों को भरने के लिए हमारी ज़िंदग़ी मे कुछ रिश्ते बिना प्रयास के अपने आप बन जाते हैं! ऐसे रिश्तों से हम खुद ब खुद एक जुड़ाव सा महसूस करते हैं! ऐसे रिश्तों को बयान नहीं किया जा सकता, बस उनकी गर्माहट महसूस की जा सकती है! अगर कभी इनको परिभाषित करने की कोशिश भी की जाती है, तो हम ख़ुद को ही शर्मिंदा कर जाते हैं!
हम ऐसे लोगों से मिलकर सुकून महसूस करने लगते हैं, खुलकर मुस्कुराना चाहते हैं, अपने दिल की हर बात कह जाते हैं! ये रिश्ता किसी से भी हो सकता है, किसी दोस्त से, माँ-बाप से, भाई-बहन से, या फिर किसी अजनबी से भी!
कभी-कभी, हर रिश्ते की तरह ये रिश्ता भी एकतरफ़ा होता है! सिर्फ़ आपके दिलोदिमाग़ में बनाया हुआ! इसमें सुकून सिर्फ़ आपको महसूस होता है, क़रीबी सिर्फ़ आप महसूस कर पाते हैं, ये रिश्ता ख़ास भी सिर्फ़ आपको लगता है और कभी-कभी कोई इस तरह के रिश्ते को स्वीकार नहीं करना चाहता! अनजाने में या जानबूझकर! ख़ुद से डरकर, अपने बीते हुए कल से डरकर, अपनी भावनाओं से डरकर!
इस तरह के रिश्तों की बस यही ख़ूबसूरती होती है कि यहाँ सब कुछ अपने आप होता है, सब कुछ सहज होता है, बिना किसी प्रयास, बिना किसी उम्मीद, बिना किसी नाराज़गी व बिना किसी कशिश के!
ऐसे ही रिश्तों को जीवित रखने मे सबसे ज्यादा सहयोग होता है, भरोसा का, विश्वास का!
जब आप किसी अजनबी या अपने पर भरोसा करते हैं, तो उसे अपने व्यक्तित्व का एक हिस्सा दे देते हैं! मतलब अपने जिन्दगी को उस रिश्ते में निवेश कर जाते हैं, उसमें और ख़ुद में कोई फ़र्क़ नही करते हैं! भरोसा करने का मतलब होता है, ये मानना कि किसी भी परिस्थिति में आप उनके लिए जो करेंगे, वो भी आपके लिए ठीक वैसा ही करेंगे!
वक़्त के साथ रिश्ता चाहे आगे बढ़े या वहीं छूट जाए, आपका वो हिस्सा उस इंसान में हमेशा रह जाता है!
चाहे वो इंसान आपका भरोसा तोड़ भी दे, आप उस रिश्ते को अपने प्यार से पोषित करना छोड़ भी दें, लेकिन आपका वो हिस्सा हमेशा उसके अंदर रहता है! उसे ये एहसास दिलाता है कि आपने उस रिश्ते में अपने आपको कितना निवेश किया था! उसे ये याद दिलाता है कि आपके लिए वो इंसान कितनी अहमियत रखता था!
बस इसी वजह से कुछ रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते, दो लोगों के बीच पनपा वो भरोसा कहीं न कहीं हमेशा ज़िंदा रहता है! आपका वो हिस्सा हमेशा ज़िंदा रहता है! वो चाहे जितना भुलाने का प्रयास करे उसके अवचेतन मन मे वो व्यक्तित्व हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है!
जीवन के इस सफर मे हमे कभी न कभी असफलता का भी मुँह देखना पड़ता है! मनोविज्ञान मे एक सिद्धांत है जिसको अंग्रेजी मे कहते हैं, "Frustration Aggression Theory". जिसके अनुसार असफल व अवसाद की स्थिति मे हम आक्रामक हो जाते हैं और हम अपने आगे सबकुछ नगण्य समझने लगते हैं और "Ego defense mechanism - Displacement" के अनुसार हम असफलता की जिम्मेदारी दूसरों पर मढ़ देते हैं जबकि हम यह जानते हैं कि पूरे जिम्मेदार हम हैं!
दुनिया में सबसे आसान काम होता है, दूसरों पर किसी चीज़ का दोष मढ़ना! ऐसा करने पर न तो ख़ुद को बुरा महसूस होता है और न ही पश्चाताप की भावना दिल को सताती है! कितना अच्छा महसूस होता होगा तब जब कुछ भी बुरा होने का ज़िम्मेदार किसी को ठहराया जा सके और उसे अपने बारे में बुरा महसूस कराया जा सके!
अब आते हैं, सबसे मुश्किल चीज़ पर! वो है, ज़िम्मेदारी उठाना! अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उनसे होने वाले नुकसान की भरपाई करके आने वाले कल को बेहतर बनाना! ये ख़ुद को बुरा महसूस कराने के लिए नहीं, बल्कि वक़्त के साथ अपने व्यक्तित्व में सुधार के लिए होता है!
ऐसा करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है और सब्र भी! ऐसा करने के लिए ख़ुद पर भरोसा होना चाहिए और एक अच्छा इंसान बनने की मंशा भी!

कहते हैं कि कुछ ज़ख़्म कभी नहीं भरते! मुझे लगता है कि कुछ ज़ख़्म ऐसे होते हैं, जिनका दर्द हम ज़िंदग़ी भर सहना चाहते हैं! ऐसे ज़ख़्मों को हम ठीक उसी तरह संजोकर रखना चाहते हैं, जिस तरह हम उस इंसान की यादों को संजोकर रखते हैं, जिसने हमें वो दर्द दिया है!
ये सच है कि कुछ चीज़ों से उभरना मुश्क़िल होता है, लेकिन कभी-कभी हम उभरने की कोशिश तक नहीं करते और अपनी ज़िंदग़ी को कोसते जाते हैं और कभी-कभी बस उस ज़ख़्म को सहने की आदत को छोड़ नहीं पाते!
ज़िंदग़ी में कुछ इंसानों को अहमियत देना अच्छा है और ज़रूरी भी, लेकिन ये समझना भी ज़रूरी है कि हर इंसान का हमारी ज़िंदग़ी में एक हिस्सा होता है! जिसके हिस्से में ज़्यादा वक़्त आया, वो ज़्यादा देर तक ठहरता है, और जिसके हिस्से में कम आया, वो वक़्त देखकर निकल जाता है!
हाँ, ज़िंदग़ी आसान नहीं है और हमारे रिश्ते भी कम उलझन भरे नहीं है, लेकिन उन्हें सुलझाने का काम हमारा ही है और ज़िंदग़ी को आसान बनाने का भी!
ये हमारी मानसिक शांति के लिए ज़रूरी है और हमारी फ़िक़्र करने वाले लोगों के लिए भी!

जिंदगी विविधताओं से भरी पड़ी है! अत: ज़िंदग़ी से शिकायत सबको होनी चाहिए! मुझे इसमें कुछ ग़लत नज़र नहीं आता, जिससे हम प्यार करते हैं, नाराज़गी भी तो उसी से हो पाती है और फिर, हर चीज़ की तरह ज़िंदग़ी की भी अपनी ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ हैं!
ख़ामियों की बात करें, तो हर चीज़ और हर इंसान की तरह ये भी कभी न कभी आपको छोड़कर चली जाती है! इसका सिखाने का अंदाज़ थोड़ा सा जुदा है! ये आपको कड़वे अनुभव देती है और उनसे आपको मज़बूत रहना सिखाती है! ये गाहे-बगाहे आपसे नाराज़ भी हो जाती है और अगर आप इसकी क़द्र नहीं करते, तो ये भी आपकी क़द्र करना छोड़ देती है!
ख़ूबियों में सबसे प्यारी बात ये है कि ये हमें हमारे वजूद का एहसास कराती है! हमारा अस्तित्व क्या है इसका आभास कराती रहती हैं! वक़्त-वक़्त पर हमें बताती रहती है कि आपके लिए अपने आपसे ज़रूरी और कुछ नहीं होना चाहिए! ये हमें लोगों से मिलाती है, उनसे रिश्ते बनाना, प्यार करना सिखाती है! ये हमें सिखाती है कि जो भी हो जाए हमें बस अपना काम करते रहना है, जैसे ये बेनागा चलती रहती है, बेफ़िक्र सी!
तो कभी-कभी ज़िंदग़ी से नाराज़ होना ठीक है! नाराज़ तो हम ख़ुद से भी हो जाते हैं! ज़रूरी बात ये है कि ज़िंदग़ी के लिए और अपने आप के लिए प्यार बरकरार रहे! तभी ज़िंदग़ी आपकी क़द्र करेगी और आप ख़ुद अपने आप की भी प्यार कर सकेंगे!
करीब हर इंसान किसी भी बात को अपने नज़रिये से देखना पसंद करता है! हर इंसान को यही लगता है कि किसी भी चीज़ के बारे में जो वो सोच रहा है, वो ही ठीक है! ऐसा इसलिए है क्योंकि हम किसी भी और से ज़्यादा अपने आप पर, अपनी सोच पर विश्वास करते हैं!
ख़ुद पर विश्वास होना अच्छा है, लेकिन ऐसा करते हुए दूसरे व्यक्ति की सोच को ही नकार देना अजीब है! ख़ुद को ऊपर रखते-रखते और दूसरे को ग़लत साबित करते-करते हम ये एहसास ही नहीं कर पाते कि किस तरह धीरे-धीरे हम अपने सबसे क़रीबी लोगों को दूर कर देते हैं! शायद हमारे अंदर अहम की भावना आ रही होती है!
जब हम किसी से पहली बार मिलते हैं, तो उसके बारे में सब कुछ जान लेना चाहते हैं और उसकी सोच को तवज्जो देते हैं! ये सब शायद हम उसके व्यक्तित्व को खोलने के लिए और उसके क़रीब आने के लिए करते हैं!
मज़े की बात ये है कि जब वो व्यक्ति हमें अपना क़रीबी महसूस करके हमें दिल से अपनी बात कहना शुरू करता है, तो हम उसकी सोच को, उसके व्यक्तित्व को तवज्जो देना कम कर देते हैं! अब हमें ये डर लगने लगता है कि हमारे व्यक्तित्व में हमसे ज़्यादा उसका व्यक्तित्व न भारी हो जाए और हम उसे नकारना शुरू कर देते हैं और इग्नोर मारते है!
धीरे-धीरे हम फिर से अजनबियों से हो जाते हैं और ये प्रक्रिया बार-बार और अमूमन दोहराई जाती है। इसे रोकने का कोई तरीका मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ! अपने मम्मी पापा से बात किया व कई सारी किताबें पढ़ी और आज मनोविज्ञान पढ़ रहा हूँ लेकिन मुझे इसका जवाब नही मिला! अपने व्यक्तित्व को बचाने के फेर में हम दूसरों के व्यक्तित्व से खेल जाते हैं और अफ़सोस की बात ये है कि इसे ग़लत भी नहीं ठहराया जा सकता!
आख़िर, अपने आप को बचाने का हक़ तो हर इंसान को है!

हम जीवन मे कितने भी बड़े हो जाएँ, लेकिन अपने क़रीबी लोगों से ठीक उसी तरह रूठ जाते हैं, जैसे बचपन में अपने माता-पिता से रूठ जाते थे और मनचाही चीज़ मिल जाने पर उसी तरह खिलखिलाते हैं, जैसे बचपन में खिलखिलाते थे!
हम जितने मर्ज़ी बड़े हो जाएँ, लेकिन सपने देखना नहीं छोड़ते! ख़ुद को आगे और बेहतर देखने की ख़्वाहिश ख़त्म नहीं होती! बस हाँ, सपने बदल जाते हैं और ख़्वाहिशें बदल जाती हैं!
तो ज़रूरत बस इतनी है कि अपने अंदर छिपे इस बच्चे को पहचाना जाए और उसे खुलकर बाहर आने की आज़ादी दी जाए! ऐसा करने से जो ख़ुशी मिलेगी, वो शायद दुनिया की और कोई चीज़ नहीं दे पाएगी!


©Rahul_Pal

Saturday, 19 January 2019

हॉस्टल लाइफ और वो रूममेट

मुद्दतों बाद जब तुम अपने बच्चे को स्नातक की पढ़ाई के लिए किसी विश्वविद्यालय भेजोगे तो उस समय आपके घर मे बीबी बच्चों के अलावा कोई नहीं होगा! आपका वो छात्रावास वाला रूममेट नही होगा जो सुबह सुबह जोर जोर से बोलबोलकर तुम्हारी नींद को डिस्टर्ब करता है, कभी कभी समाचारपत्र को जोर जोर से पढ़ने लगता है !  जो चुपके से तुम्हारा परफ्यूम लगाकर क्लॉस के लिए निकल जाता है! अरे भोपड़ी के तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ, अबे हरामखोर तुम भूल गए ना मुझे!
अरे हम वही हैं जो अपने अपने घर से सैकड़ों किमी दूर रहकर एक दूसरे का गार्जियन की तरह ख्याल रखते थे, इतना ज्यादा ख्याल रखते थे कि माई बाबू की कभी याद ही नहीं आती है! 
दो बजे वाली क्लॉस करने को बाद आता था तो बस एक ही सवाल पूछता है, "भाई, खाना खाया कि नहीं?" लेकिन भाई तो दगाबाज निकल जाता है और बोलता है, "हाँ, मैने खा लिया! तुम भी जल्दी बचाखुचा खा लो वरना मेस बन्द हो जायेगा! "
"यार हम लोग खाना खाने के बाद लाइट बन्द करके बिन्दास सोएंगे! उसके बाद पढ़ना है!"
"हाँ बे, मै भी बहुत थक गया हूँ!"
लाइट के लिए, दोस्तों के रूम पर आने के लिए और तो कभी कभी मोदी जी को लेकर थोड़ी बहुत नोकझोंक व विवाद तो रूममेट का धर्म है! रविवार के दिन कपड़े धोने के लिए रूममेट से हाथ पैर जोड़कर मिन्नतें करना, लेकिन रूममेट जैसा कठोर दिल वाला कोई नही है! क्योकि परफ्यूम का असर भी खतम हो गया है तो फिर मन ना होते हुए भी कपड़ा तो धोना ही पड़ेगा! रातों रातों घंटो घंटो अपनी कन्यामित्र से बतियाकर पार्टनर को जलाने का सुख बहुत खतरनाक होता है!
कभी कभी बहुत रात को वापस आने पर ये केवल रूममेट ही पूछ सकता है, "कहाँ थे बे अभी तक? कहीँ किसी लड़की वड़की का तो चक्कर नहीं? "
"नहीं यार लाइब्रेरी मे था, वो पीले सूट वाली लड़की जो थी, आज बहुत स्माइल दे रही थी, कसम से देखना कुछ दिनो मे पटा लूँगा! "
कुछ कही अनकही न जाने कितनी मुहब्बत की दास्तान जो केवल रूममेट तक की सीमित रह जाती थी, आगे नहीं बढ़ पाती है!
रात के 1 बज चुके होते हैं और सबलोग अपने अपने कामों मे मशगूल रहते हैं! ऐसा सन्नाटा कि सबकी दिल की आवाज भी साफ साफ सुनी जा रही थी! तभी तो मैने अचानक बोला "चलो बाहर चलते हैं चाय पीने!" "अबे तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी!"
चाहे जितनी भी काली रात हो, सर्द भरी रात हो, लेकिन  हॉस्टलों मे रहकर अगर रात मे बाहर की चाय नही पी तो खाक होस्टल मे रहे हैं! घर के सदस्यों से भी बढ़कर हमेशा दिलदार बनकर ख्याल रखने वाला ये रूममेट और कभी कभी तो इतना ख्याल रखता है कि बाथरूम मे कितने देर तक था, ये भी याद रहता है! कभी कभी सरदर्द का बहाना लेकर गर्ल्स हॉस्टल के चक्कर व वीटी पर चाय पीने जाना, हेल्थ सेंटर जाकर अपना वेट चेक करना व कभी कभी भौकाल मारते हुए अपने नंबर बढ़ाचढ़ाकर बताना इन सब मे बहुत कुछ सीखने को मिलता है!
इतने सारे दोस्त जिनका कोई ठिकाना नही, लेकिन सेमेस्टर क्लियर करने की कला, कम पैसे मे रेस्त्रां जाने की कला, गर्लफ्रेंड बनाने की टिप्स, किसी को मारने की प्लान और सबसे बढ़कर तो जब बर्थडे वाला दिन आता है तो जीपीएल करने का सबसे ढांसू गुप्त प्लान इसी रूममेट का रहता है! ऐसे लगता है कि सारे विलक्षण प्रतिभा की धनी हमारी मित्रमण्डली ही है! थ्री इडियट मूवी देखो तो लगता है कि रैंछोड़दास ने ऐक्टिंग हमी से ही सीखी होगी!

तब ये पल, ये अल्हड़पन, ये विशाल हरा भरा परिसर, ये बनारस का स्वाद कोसो दूर हो जायेगा, बस रह जायेंगी तो सिर्फ कुछ यादें और शायद कुछ फोटोग्राफ्स भी, शायद फोन नंबर भी न रहे! फेसबुक बाबा तो कब का छूट जायेंगे, नई नई जिम्मेवारियां जो इसकी जगह ले लेगी! तब इन पलों को, अपने दूसरे गार्जियन यानी रूममेट को याद करके केवल गम व बिछुड़न के दो आँसू टपका देना!

Thursday, 17 January 2019

प्रेम सँवेदना





जब मै तुम्हें देखती हूं तो लगता है कि सौंदर्य की परिभाषा तुम्हारे लिए ही बनी है! वैसे तो तुम्हारे शब्दों मे तुम्हारी सादगी को मैने पढ ली थी!
मगर तुम्हें देखा तो लगा, तुम पूर्ण रूपेण सादे हो,पूरी  बने ही नहीं हो! इतना साधारण  मैंने पहले कभी नहीं देखा था!
क्लास के अंदर जब आपको पहली बार देखी थी तो मै कई बार दौड़ कर बाथरूम गई  और मुँह धोकर, अपना बाल सही करके शीशा देखी और तुम्हें यह भी बता दूँ- "मेरे सारे बाल इतने काले नहीं हैं!  कुछ सफेद बाल हैं इनमें! कल ही कलर लगाया है!" अचानक ख़याल आया, क्यों मै इतना घबरा रही हूँ, उम्र के साथ आई चेहरे की झुर्रियों को क्यों छुपा रही हूँ ? और स्वत: चेहरा मुस्कुराहट से भर गया!
मेरे प्रेमिका बनने की चाह चली गई, तुम्हें देखकर! इतना ही नहीं, मैं एक पत्नी हूँ, यह भी भूल गई थी, जैसे ही तुमने मुझे देखा! एक ऐसा भी नज़र था वह, जिसने मुझे देखकर भी नहीं देखा। मुझे लगा मैं बस एक स्त्री हूँ, और एक पूरी स्त्री बनती चली गई वहीं तुम्हारे सामने! निस्संकोच!
तुम हो कि आते ही बोले, "कबीर की छवि को हम कभी किसी तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देखते हैं। यही है कबीर का निर्गुण!" मैं खड़ी की खड़ी रह गई भूल ही गई थी, मैं कौन हूँ! आते ही सीधी वही बात, जो करनी है, और कुछ भी नहीं। बच्चे करते हैं ऐसे तो,
फिर तो बातों में रात कर दी तुमने! घर जाना है, भूल गये! मैंने कहा आज यहीं रुक जाओ! तुमने तो औपचारिकता के लिए भी मना नहीं किया! वो घर पर नहीं हैं, और बच्चे दोनों होस्टल में रहते हैं, यह तो मुझे पता था न! तुमने तो ना कोई सवाल किया, ना संकोच जताया! जैसे मैंने कह दिया तो बस रुकना ही है!
खाना खाया तो, इतना भी नहीं कहा कि खाना अच्छा है! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! याद आया तो कह रही हूँ!
और रात को आकर मेरे बिस्तर पर ही लेट गये, मेरे साथ! मुझे लगा था कि तुम मुझे छुओगे, तुरन्त नहीं तो थोड़ी देर बातें करके, और तुम्हारे स्पर्श को मैं स्वीकार कर लूँगी, तुरन्त नहीं तो एक दो बार तुम्हारा हाथ हटा कर! क्योंकि यही अर्थ होता है, एक ही बिस्तर पर एक स्त्री और एक पुरुष के होने का, सोने का! प्रेमी-प्रेमिका हो जाना! पर तुम तो कबीर से चलकर उस अंधेरे में चले गए जहाँ से हम यहाँ आये हैं, उस ईशाणु तक पहुँच गये जिससे हम बने हैं! सुनते सुनते मेरी आँख लग गई!
मुझे तब का पता है जब तुम उठ कर गये, और ड्राईंग रूम में सोफे पर जा कर सो गये! प्रेमिका प्रेमी से जब लिपट कर सोती है तो सोने का उपक्रम करती है! पर स्त्री जब स्वयं से ही लिपट कर सोती है, तो सोती है! यह केवल तुम जान सकते हो!
प्रेम अधूरा होने का एहसास है! पिपासा है! मैं अब तृप्त हो चुकी हूँ, तुमसे मिलने के बाद!
चले गये हो तो भी क्या है! लो आओ, बिना तुम्हें छूए ही तुम्हें अपने वक्ष से लगा लेती हूँ, मेरे कल्पना-पुरुष!
अब मैं एक पूरी प्रेमिका हो गई हूँ!

तुम्हारी पूर्व और पूर्ण प्रेमिका! 😍