Saturday, 30 March 2019

प्यार का मेथमेटिक्स



ये बहुत अजीब लेकिन सच बात है कि ख़ुद से प्यार में पड़ने से पहले हमें कई ऐसे लोगों से प्यार करना पड़ता है, जो हमें उतना प्यार नहीं करते जितना हम उन्हें करते हैं, या फिर हमारी क़द्र नहीं करते!
ख़ुद से प्यार कर पाने की मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता हमेशा कुछ नाकामियों से होकर गुज़रता है! ऐसा इसलिए है क्योंकि एक इंसान होने के नाते बचपन से हमें सिखाया जाता है, दूसरे इंसानों से, जानवरों से, पेड़-पौधों से प्यार करना! ख़ुद से प्यार करना कोई नहीं सिखाता, वो हमें ज़िंदग़ी ही सिखाती है!
बचपन में जब हम परीकथाएँ पढ़ते हैं और जवानी में जब हम रूमानी फ़िल्में देखते हैं, तो सोचने लगते हैं कि हमारी ज़िंदग़ी भी ऐसी हो तो क्या मज़ा हो! और हम निकल पड़ते हैं, अपनी ज़िंदग़ी वैसी बनाने को! हम प्यार करते हैं! कॉलेज लाइफ मे आकर अपनी सारी सीमाएँ तोड़ते हैं! उस इंसान की उंगली पकड़कर सारी दुनिया देख जाना चाहते हैं! उसकी नज़र से ज़िंदग़ी देखना हमें अच्छा लगता है! हम ये भूल जाते हैं कि वो इंसान भी अपने सफ़र में है! वो भी अपने लिए एक परीकथा, एक शानदार प्रेमकहानी बनाने की कोशिश कर रहा है! जब हम उसके सामने वो बन जाते हैं, जो हम नहीं हैं, तो ज़ाहिर तौर पर हम अपना बेहतरीन उसे नहीं दे पाते! और फिर हम उसके लिए बेस्ट नहीं रहते और वो इंसान अपने लिए नया रास्ता तलाश करने लगता है!
हम फिर प्यार करते हैं! इस बार हम ठानकर बैठे होते हैं कि ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जो हमारे व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता! हम उस इंसान को अपना वो हिस्सा देते हैं, जो आजतक अपने किसी क़रीबी को न दिया हो! हम अपनी आत्मा खोलकर उसके सामने रख देते हैं! वो इस बात को समझता है कि हम कितने मासूम और नाज़ुक हैं! वो हमारी कमज़ोरियों को समझता है और एक इंसान होने के नाते जाने-अनजाने में उनका फ़ायदा भी उठा जाता है! हम इस इश्क़ में मिला दर्द सहते हैं, सहते जाते हैं क्योंकि हमें लगता है कि दर्द से बनने वाली प्रेमकथा ही शायद सबसे अच्छी प्रेमकथा होती है! जब दर्द सीमा से बाहर हो जाता है, तो हम फट पड़ते हैं! इस बार हम तय करते हैं, अब किसी को मौका नहीं देना ख़ुद को दुःख पहुँचाने का! हम अब अकेले अपना सफ़र तय करना चाहते हैं!
हम फिर से प्यार करते हैं! इस बार वाला प्यार बहुत सतर्क होकर किया जाता है! अब तक हम ख़ुद को जान चुके होते हैं और लोगों को भी! हम जानते हैं कि हम भावनात्मक रूप से कितने कमज़ोर हो सकते हैं और दूसरा इंसान किस हद तक हमारा फ़ायदा उठा सकता है, हमारी भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है! हम डरकर प्यार करते हैं, हम ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा प्रयास करते हैं और यहाँ हमें एहसास होता है कि हम दूसरों से प्यार करने की ताक़त कहीं खो चुके हैं! वो इंसान हमें पसंद है, हम उसे बाकी लोगों से दो दर्जे ऊपर चढ़ाकर उससे व्यवहार करते हैं! वो इंसान भी अपना सफ़र तय करके आया है, उसने भी राह के लगभग वो सभी पत्थर देखे हैं, जो हमने देखे हैं! हो सकता है, वो हमसे कहीं आगे हो! हम भी ख़ुद को बचाए रखने के लिए अपना सौ प्रतिशत उसे नहीं देना चाहते, इसलिए उसे भी कभी पूरी तरह ये एहसास नहीं हो पाता कि वो हमारे लिए क्या है! वो उस लिहाज़ से हमारी क़द्र नहीं कर पाता और ये प्रेमकहानी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाती है!
इस सब के बाद हमें अपनी एहमियत का एहसास होता है! हमें अब पता चलता है कि हमारी परीकथा कहीं हमारे अंदर ही मौजूद है! हम ही अपनी प्रेमकहानी कहानी के हीरो और हीरोइन हैं! हम ही अपने आप को समझेंगे! हम ही ख़ुद को ख़ास महसूस कराएँगे। हम ही अपना जीवनभर साथ निभाएँगे! क्योंकि दूसरों से उम्मीदें लगाकर और निराशा पाकर हम देख चुके हैं! अब ख़ुद से उम्मीदें लगाते हैं, ख़ुद को सशक्त करते हैं, ख़ुद को एहमियत देते हैं और अंत में ख़ुद से प्यार कर जाते हैं!

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