तुम केमि्स्ट्री की व्यस्त प्रैक्टिकल सी।
मै सोशल का मनोविज्ञान प्रिये।।
तुम सुंदरी हो विज्अुल आर्ट की।
मै ज्ञानी हूं विधि संकाय प्रियेे।।
तुम मीठी वीटी की लौंगलता सीे।
मैं मैत्री की ठंडी चाय प्रिये।।
तुम अनुशाशन हो गर्ल्स होस्टल की।
मै बिरला का संग्राम प्रिये।।
तुम बीएचयू की कुलगीत सी।
मै एलबीस सा बदनाम प्रिये।।
मन मेरा भी अब शांत सा है।
जैसे मैदान-ए-एजी फार्म प्रिये।।
सांसो की माला सेंट्रल लाइब्रेरी।
रहे तुम्हारा प्रतिष्ठान प्रिये।।
कभी कभी मन करता है।
करलू तुमपर विश्वास प्रिये।।
पर तुम्हारी बातों में न आती।
मधुवन सी मिठास प्रिये।।
दिल जर्जर सा हो गया है।
जैसे दीवारे ब्रोचा छात्रावास की।
नही रही अब वही पुरानी।
एमएमवी वाली बात फिर।।
कहा गया वो जून जमाना।
कहा गया वो अफसाना।।
समय हुआ दीदार किये हुए।
तेरी पुरानी मुस्कान की।।
माना समय बदलता है।
इसमें कोई दो राय नही।।
पर जो कल तक अपना था कहते।
आज उनसे बढ़ कर कोई पराय नही।।
सदैव रहेगी ये काहिविवि।
याद हमेशा जीवन में।।
जीवन की सच्चाई से मिला।
जैसे गंगा वरूणा संगम में।।
समय रेत सा बहता जाता।
गंगा की पावन धारा में।।
खड़ा रहा मैं,रहा देखता।
करके सब व्यारा नारा मैं।
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