Thursday, 5 July 2018

शिक्षा व्यवस्था : समस्या व समाधान

शिक्षा मानव का सर्वांगीण विकास करती है, केवल डिग्री व कॉलेज के साथ नाम जुड़ना ही शिक्षा नहीं है! यहां पर आज हम स्कूल व कॉलेज मे दी जाने वाली शिक्षा की विभिन्न पहलुओं व समस्याओं को देखेंगे!

  स्कूल में पढ़ाई करके अच्छे नंबर लाओ, फिर कॉलेज से डिग्री लेकर जॉब के लिए भागदौड़, किसी तरह जॉब मिल गई तो शादी - बच्चे, सास- ससुर और फिर घर गृहस्थी को संभालना होता है! क्या यही हमारी सफलता का मायने हैं? हम एक मशीन बन कर रह गए हैं! स्कूल में अगर किसी बच्चे से एक नंबर भी आपका कम आ गया तो पहले टीचर आपको फेल व गधा घोषित कर देगा! "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता" और फिर घर आने पर माता-पिता कहते हैं "इतनी फीस हो कोचिंग के बावजूद एक नंबर कैसे कम आ गए" कहीं कहीं तो स्कूलों में इतनी इतनी बुरी स्थिति है कि अगर अध्यापक द्वारा बताए गए उत्तर से अलग आपने सोच कर अपने शब्दों में उत्तर लिख दिया तो "बहुत होशियार बनते हो चलो मेरे प्रश्नों का जवाब दो" ऐसी बोलते हैं! दूसरों बच्चो के साथ उनकी तुलना की जाती है! आप अपने मन में प्रश्नों को सोच कर उसका जवाब अपने शब्दों में दे नहीं सकते हो! मतलब यहां पर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन नाम की चीज ही नहीं है!  दूसरा पहलू एसाइनमेंट है जिसमें अध्यापक अापको टॉपिक बोल देते हैं और आपको उसके बारे में अपने शब्दों मे लिखना होता है! बच्चे अक्सर घर में बड़े भाई या बहन से वह एसाइनमेंट बनवा लेते हैं या जो खुद बनाते हैं वह इंटरनेट से कॉपी पेस्ट कर लेते हैं! कभी-कभी तो दुकानदार को पता होता है कि एसाइनमेंट कौन से टॉपिक पर बनता है तो वह बच्चों से मोटी रकम वसूल कर उनको बना-बनाया असाइनमेंट दे देते हैं, बच्चा वही जमा कर देता है! शायद ही कोई विद्यार्थी हो जो खुद से सोचकर बनाता हो! यहां भी इनोवेशन नाम की कोई चीज ही नहीं है!
  एक ओर सरकार कहती है कि सरकारी स्कूलों मे बच्चे पढ़ते ही नहीं है तो इसका भी कारण है: हम केवल उत्तर प्रदेश राज्य के आंकड़ें ले तो करीब 47000 स्कूलों मे विद्युतिकरण ही नहीं हुई है, 3500 स्कूलों मे शुद्ध पेयजल नहीं है, 36000 स्कूलों मे डेस्क व बेंच नहीं है! प्राइवेट स्कूल अत्याधुनिक सुविधाओं व तकनीकी से सुसज्जित रहते हैं इसीलिए बच्चो व माता पिता को आकर्षित करने मे इसीलिए बहुत आगे रहते हैं!
  हमारे यहां तो कहीं-कहीं इंटर तक के स्कूलों मे लैब भी नहीं होती! इंटर की बात छोड़ो MSc व MTech के लिए भी प्रैक्टिकल में वही सिखाते हैं जो मशीन वर्षों पहले बंद हो जाती है मतलब कि अगर हम उसके बारे में जानकारी ले लेंगे तो उसका हम कहीं उपयोग कर ही नहीं सकते हैं! स्कूल की बात छोड़ो, बैंकिंग सेवाओं जैसे ATM व अन्य सेवाओं जैसे साइबर सुरक्षा मे Windows XP  का उपयोग होता है. जबकि माइक्रोसॉफ़्ट ने Windows XP को बहुत पहले बंद कर दिया है!
  प्रतिभा पलायन भी एक बड़ी समस्या है हमारे यहां प्रतिभावान बच्चों के लिए माहौल ही नहीं होता है! IIT, AIIMS, IIM व उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनको मजबूरन यहां से विदेशी विश्वविद्यालय में जानने के लिए मजबूर होना पड़ता है क्योंकि हमारे यहां उनके शोध के लिए संसाधन व माहौल ही नहीं है, इस समस्या को रोकने के लिए सरकार अब ध्यान देती दिख रही है लेकिन जमीनी स्तर पर उसका बहुत ही कम असर दिख रहा है!

 आज दशा इतनी खराब है कि कॉलेज पास आउट स्टूडेंट खुद कंपटीशन फॉर्म नहीं भरना नही जानते, बैंकों में सामान क्रियाकलाप नहीं कर सकते हैं, खुद फैसला लेने में उनका विश्वास डगमगा जाता है! बेरोजगारी की हालत इतनी खराब है कि जब कोई ग्रुप D की नौकरी जैसे चपरासी व सफाई कर्मी की भर्ती निकलती है तो MA, MBA, PhD व MTech पास आउट बच्चों के लिए फॉर्म भरना पड़ता हैं क्योंकि हमारा स्कूली सिस्टम ऐसा हो चुका है कि रट्टा मार मार कर तो हम पास हो जाते हैं  लेकिन वही कंपटीशन व प्रैक्टिकल में आते ही हमारे तोते उड़ जाते हैं क्योंकि हमारी जड़ ही खराब है! हमारे यहां कक्षा आठवीं फेल व हाईस्कूल फेल शिक्षा मंत्री बनाए जाते हैं, ये लोग शिक्षा का मतलब ही नही जानते होंगे!
  अभी कुछ दिन पहले किसी साहित्यकार शिक्षाविद ने एक बहुत ही अच्छी बात कही थी  "जब तक हमारी शिक्षा मातृभाषा में नहीं होगी तब तक हमारे देश में इनोवेशन नहीं आ सकता क्योंकि अगर हम दूसरी भाषा में कोई कहानी पढ़ते हैं तो दूसरों को सुनाने में हम वही कहानी उन्ही शब्दों के साथ दोहरा देते हैं लेकिन अगर अपनी मातृभाषा में कहानी सुनते हैं तो दूसरों को वही कहानी समझाने के लिए हम नए नए शब्द विकसित करते हैं तो ऐसे ही इनोवेशन का जन्म होता है!"
 हमारे देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति लागू है अंग्रेजों को भारत छोड़े 70 साल हो गए लेकिन आज भी उनकी नीति हमारे देश में लागू है मतलब एक तरह से आज भी हमारे यहां शैक्षिक गुलामी है! उनका मकसद एक ही था "फूट डालो और राज करो!" आज विभिन्न कानवेंट स्कूल में टीचर बच्चों को अंग्रेजी को रट्टा मारकर पढ़ाने पर तुला हुआ है, अंग्रेजी बोलना अच्छी बात है लेकिन अंग्रेजी के चक्कर में हिंदी बोलने में शर्म आती है तो यह विकट समस्या है! भाषा केवल ज्ञान का माध्यम है लेकिन हम इसी को ही ज्ञान मान बैठते है!
 आज हम केवल शरीर से भले भारतीय हैं लेकिन चिंतन, मनन, अन्वेषण, विश्लेषण, सर्जनात्मकता उत्सुकता, उपकारिता, अध्यात्मिक संस्कृति व धैर्यशीलता हमारे अंदर नहीं है!
   शिक्षा का बजट हमारे यहां एक परसेंट ही होता है! हमें अपनी शिक्षा नीति स्वयं सुधारनी होगी हमें अपनी आवाज इतनी बुलंद करनी पड़ेगी कि शिक्षा मंत्रालय के पदों पर बैठे राजनेताओं को अकल आ जाए जिससे उनको सोचने पर मजबूर होना पड़े!

 यहां कुछ उपाय हैं जिनकी मदद से हम शिक्षा व्यवस्था को सुधार सकते हैं-

1. एक शिक्षा पाठ्यक्रम एक विद्यालय पद्धति लागू होना चाहिए!
2. हर स्कूल में एक लैब का होना बहुत जरूरी है!
3. स्कूल में एक लाइब्रेरी होना चाहिए जहां बच्चे अपनी रुचि के हिसाब से बिना रोक-टोक कोई भी किताब पढ़ सकें ताकि उनको अपनी रुचि पता चले और  वो अपने आप खुद का मूल्यांकन कर सके!
4. हर स्कूल मे एक काउंसिलिंग के तौर पर एक मनोवैज्ञानिक होना चाहिए जहां बच्चे अपनी समस्या को मित्रवत बता सके!
5. कई सारे NGO जो शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत अनोखा काम करते हैं, उनको स्कूलों से जोड़ देना चाहिए. इससे स्कूल व NGO दोनो को लाभ मिलेगा!
6. कौशल आधारिक तकनीकी शिक्षा देने से कई लोगों को स्वरोजगार मिलता है, ये शिक्षा खासकर ग्रामीण तबके के लोगों को दी जानी चाहिए जिससे बेरोजगारी अपने आप खत्म हो जायेगी!
7. कक्षा में हर छात्र को संबोधन का अवसर मिलना चाहिए, इससे छात्र का आत्मविश्वास मजबूत होता है!
8. हमारे यहां जो कक्षा 8 तक फेल न करने की नीति है बहुत ही खराब है, फेल न होने का डर रहता नही तो बच्चा कैसे पढ़ेगा!
9. हर वर्ष अभिभावक - अध्यापक का मिलन समारोह होना चाहिए, जिसमे अभिभावक को समझाना चाहिए कि नंबर तो महज एक नंबर है, आप बच्चो की शैक्षिक गुणवत्ता पर ध्यान दीजिए, इसी गुणवत्ता के आधार पर प्रतिभा सम्मान समारोह भी होना चाहिए!
10. "स्वास्थ्य ही हमारा सबसे बड़ा धन है!" शिक्षा हमारे लिए जितना जरूरी है, खेल कूद भी उतना ही जरूरी हैं! अगर विभिन्न अवसरों पर स्कूल की तरफ से खेल का आयोजन किया जाए तो बच्चो को तनावमुक्ति व आनंद मिलता है साथ ही उनके अंदर टीम भावना जैसे गुण विकसित होता है!


 स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार कहा था कि शिक्षा मानव को पूर्ण बनाता है, पूरे संसार में मानवता के संदेश को प्रचारित करने के लिए शिक्षा की अलख जोर शोर से जलानी पड़ेगी! हम सबकी गलती के कारण ऐसे हालात उत्पन्न हुए है, ये हमारी आपकी समस्या है अतः आवाज हमको आपको उठानी पड़ेगी! हमारी सरकार से ये गुज़ारिश है कि भारतीय संविधान मे आजादी से लेकर अब तक कई संशोधन हो चुके हैं तो क्या भारत को पुनः जगद्गुरु बनाने के लिए एक और संशोधन नही हो सकता! मात्र संशोधन ही काफी नही है जमीनी स्तर पर भी हकीकत दिखनी चाहिए!


राहुल पाल  (काशी हिंदू विश्वविद्यालय)

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