वह चश्मे वाली लड़की थी
जो मेरे साथ पढ़ती थी
चुपके चुपके हौले हौले
मुझको देखा करती थी
खामोश लफ्ज थे मेरे
वह बकबक बोला करती थी
गंगा की पवित्रता थी उसमें
और मिश्री जैसी मीठी थी
धीमे धीमे खामोशी से
जब वह बातें करती थी
रिमझिम जैसी बातों में से
एक ग़ज़ल निकला करती थी
तनहाई में गुनगुनाता हूं वो गजल
जब वह याद आती थी
उदास होना तो मेरा नसीब है
वही सफर वहीं मंजिल थी
क्या लिखूं अब उसके बारे में
यौवन की वो एक ज्वाला
मेरे प्रेम की एक प्याला थी
वह चश्मे वाली लड़की थी
जो मेरे साथ पढ़ती थी...
जो मेरे साथ पढ़ती थी
चुपके चुपके हौले हौले
मुझको देखा करती थी
खामोश लफ्ज थे मेरे
वह बकबक बोला करती थी
गंगा की पवित्रता थी उसमें
और मिश्री जैसी मीठी थी
धीमे धीमे खामोशी से
जब वह बातें करती थी
रिमझिम जैसी बातों में से
एक ग़ज़ल निकला करती थी
तनहाई में गुनगुनाता हूं वो गजल
जब वह याद आती थी
उदास होना तो मेरा नसीब है
वही सफर वहीं मंजिल थी
क्या लिखूं अब उसके बारे में
यौवन की वो एक ज्वाला
मेरे प्रेम की एक प्याला थी
वह चश्मे वाली लड़की थी
जो मेरे साथ पढ़ती थी...
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