Tuesday, 2 January 2018

कल तेरे शहर से

कल तेरे शहर से क्या गुजरा
मुझे तुम्हारी बहुत याद आई
धुंध में डूबे शहरों की
सूनसान गलियां
बंद किवाड़ वाले दरवाज़े
और घरों की छतों पर
गीला कपड़ो के सिवाय कुछ नहीं
दुपहरी की छुपी छुपा धूप
हर बार तेरी याद दिलाते रहे
धान के खेत की ये हरियाली
मानो तेरे इंतजार मे हो
एक अजीब सा सन्नाटा
पसरा है मेरे गाँव मे
मैं अपना गाँव छोडकर आया
तेरे बनारस शहर मे
तेरे से कब मेरा हो गया
पता ही नही चला
याद है वो पल
अस्सीघाट की सीढ़ियो
पर जब हम तुम बैठे थे
एक खंडहर का
गुंबद था मेरे सामने
गंगा जी बह रही थी खंडहर के बाजू से
हमेशा की तरह ख़ामोश थे तुम
रेंगती हुई नाव मानो
दुखों का एक सिलसिला थी
और तुम चले गये
शाम बुझ रही थी और
लौटना की कोई आहट नहीं थी कहीं....

No comments:

Post a Comment