कल तेरे शहर से क्या गुजरा
मुझे तुम्हारी बहुत याद आई
धुंध में डूबे शहरों की
सूनसान गलियां
बंद किवाड़ वाले दरवाज़े
और घरों की छतों पर
गीला कपड़ो के सिवाय कुछ नहीं
दुपहरी की छुपी छुपा धूप
हर बार तेरी याद दिलाते रहे
धान के खेत की ये हरियाली
मानो तेरे इंतजार मे हो
एक अजीब सा सन्नाटा
पसरा है मेरे गाँव मे
मैं अपना गाँव छोडकर आया
तेरे बनारस शहर मे
तेरे से कब मेरा हो गया
पता ही नही चला
याद है वो पल
अस्सीघाट की सीढ़ियो
पर जब हम तुम बैठे थे
एक खंडहर का
गुंबद था मेरे सामने
गंगा जी बह रही थी खंडहर के बाजू से
हमेशा की तरह ख़ामोश थे तुम
रेंगती हुई नाव मानो
दुखों का एक सिलसिला थी
और तुम चले गये
शाम बुझ रही थी और
लौटना की कोई आहट नहीं थी कहीं....
Tuesday, 2 January 2018
कल तेरे शहर से
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