Friday, 21 December 2018

क्रश की परिभाषा

LTC मे उसके पीछे बैठने का ख्वाब लिए,
तुम अपनी अटेंडेस भी 90% कर लेते हो!
एक घण्टे मे बोर हो जाने वाली क्लॉस,
अब एक्स्ट्रा क्लॉस का इंतजार कर लेते हो!
तुम कभी लाइब्रेरी के दर्शन नही किए थे,
अब बेशकीमती साइबर मे सीट उसको देते हो!
हमेशा उसको दिखाने के लिए तुम अब,
अंग्रेजी वाली मैगजीन पढ़ने लग जाते हो!
"भाई, मेरे ऊपर कौन सा शर्ट देगा?"
अपने रूममेट से यही सवाल पूछते रहते हो!
अपने बैकबेंचर्स के दोस्तों को छोड़कर,
अब फ्रंटबेंचर्स का चोला ओढ़ लेते हो!
प्रीवियस ईयर के पेपर्स और नोट्स,
उसके बिना माँगे भेजते रहते हो!
"मै उसको ये बात जरूर बोलूँगा,"
हर समय यही सब विचार करते रहते हो!
जब वह सामने आ जाती है तो,
नजर इधर उधर घुमाने लगते हो!
एक कपड़े से पूरा सप्ताह निकालते थे,
इत्र व जेल से लैस अब रोज वस्त्र  बदलते हो!
पहले दोस्तों संग ढाबा पर चाय पीते थे,
कैफे पर चॉकलेट शेक व कोल्ड कॉफी लेते हो!
फेसबुक के लाइक व्हाट्सअप के स्टेटस मे,
बड़ी शिद्दत से उसकी तलाश करते रहते हो!
कही वों डिस्टर्ब न हो जाए यार,
इसी डर से Hi, Hello का मैसेज नही करते हो!
व्हाट्सएप स्टेटस का स्क्रीनशॉट रखते हो,
लेकिन उसको रिप्लाई करने मे डरते हो!
उसी का ख्याल लिए जेहन मे,
अब गुमसुम से तुम रहने लगे हो!

दोस्त, शायद तुम भी अब प्यार करने लगे हो!

बेतुके बयान की दास्तां

बालीवुड के लेजेंड एक्टर नसीरुद्दीन शाह जी ने अभी एक बयान दिया था, उनके बयान को मै धर्म की नजर से नहीं देखता हूँ। उनके मन मे भविष्य के लिए जो विचार आया उसको व्यक्त कर दिया, अब हम इसी बयान के आधार पर उनको ट्रॉल करे, उनको पाकिस्तान व सीरिया जाने को बोलें या उनको धमकियाँ दे तो ये एक तरह से उनके बयान को सही साबित करने का हम मौका दे रहे हैं। यही तो वो कह रहा है हमे उनके बयान को गलत साबित करना था, लेकिन हम क्या कर रहे हैं?

दूसरी बात यह है कि हमे इन सब बातों को ज्यादा महत्व देना ही नहीं चाहिए वरना इसका राजनीतिकरण बहुत जल्दी हो जाता है। इसको धर्म व साम्प्रदायिकता से जोड़कर हम महत्वपूर्ण मुद्दों से जानबूझकर भटक जाते हैं और हमारे हाथ मे कुछ नही आता। ऐसे बयानों से हमारी भावनायें बहुत जल्दी आहत हो जाती है लेकिन वास्तविक मुद्दों और सच्चाई से हम कभी आहत नहीं होते, कितनी शर्म की बात है ना!

अक्सर हमे हमारे अधिकार पता होते हैं लेकिन हमारे फर्ज क्या हैं और हमारे कर्तव्य क्या हैं ये हमे नहीं पता होता।

हम कहाँ जा रहे हैं? हमारा लक्ष्य क्या है? वास्तव मे हमे शिक्षा की नही जागरूकता की जरूरत है क्योंकि जागरूकता ही हमे चिंतित बना सकती है और चिंता से ही हम सही और गलत मे अन्तर जान सकते हैं। हमे चिंता करना होगी कि हमारा कौन सा कदम आगे चलकर हमारी आने वाली पीढ़ी  के लिए खतरा बन सकता है, समाज मे कभी कभी कुछ चीजें, जो नही होना चाहिए, हो जाती हैं, जिसको हमे रोकने का प्रयास करना चाहिए। वरना हम मानव और पशु मे कोई अंतर नहीं। यदि हम रोकने का प्रयास नही करेंगे तो आगे चलकर यही सब हमे डराएगा और शायद हम अपनी अन्तरआत्मा और अग्रिम पीढ़ी को मुँह दिखाने के काबिल भी ना हो पाएँ।

©राहुल

Wednesday, 14 November 2018

सेमेस्टर के सीजन मे बीएचयू का रंग

बीएचयू मे अगर आपको संस्कार देखने है तो सेमेस्टर एग्जाम के जमाने मे परिसर मे कभी पैर रखिये....
पहला अटैक होता है सेन्ट्रल लाइब्रेरी मे, जहाँ पर दुनिया भर की मूल्यवान किताबों की अद्भुत खान रखी है! आपको सारी किताबें मिल जायेंगी लेकिन शायद ही रेफ्रेंस किताबें मिले! रात 9 बजे तक जब तक आपको लाइब्रेरी से भगाया नही जाता आप नही भागते! सर्दी की काली रातों मे आपकी साइकिल व बाइक ओस व कुहासे से एकदम गीली हो जाती है! ठण्ड मे भी लाइब्रेरी के बाहर के मैदान पर जी-20 का शिखर सम्मेलन चल रहा होता है!
दूसरा नजारा लाइब्रेरी से आगे कुछ कदम बढ़ाने पर वीटी दिखता है शराफत व ज्ञान की ऐसी गंगा बहती है कि माँ सरस्वती भी देख के शर्मा जाये! कल जो लड़के वीटी पर भाभियों को ताड़ते थे आज वही लड़के "श्रॉडिंगर वेव इक्वेशन" को चाटते फिर रहे हैं! पीछे से कॉमर्स फैकल्टी की खूबसूरत सी लंबी सी माशूका जा रही है लेकिन मजाल है कि उसके बार मे कुछ सोचे क्योंकि दिमाक मे जो "प्लेट टेक्टोनिक थ्योरी" जो खिसक रही है!
इधर हॉस्टल मे सबकी हवा टाइट! अरे माई हो, इतना सन्नाटा! कैंपस की हरियाली देखकर मन खुश ही नही हो रहा है, इतने सारे पेड़ इनका क्लॉसीफिकेशन! धत्त तेरी की इतनी फैमिली कौन याद करेगा बे! रात मे जिनका प्रेम अपनी गर्लसखी से घण्टो बतियाने मे जगता है आज वे दुबे जी से सिलेबस भिजवाने के लिए नाक रगड़ रहे है! गूगल पर "एनिमल डायवर्सिटी" खोज रहे है, गूगल बाबा हैरान! अरे ई कहाँ से सूरज पश्छिम से निकल आवा!
जो लोग अस्सी घाट पर जाकर अपनी माशूका के गोरे गालों पर अपने काले होंठो को रखकर प्यार की अनुभूति जगाते है उनके काले होंठ आज स्ट्रक्चरल जिओलॉजी के स्ट्रक्चर रटते रटते लाल हो जाते है! बॉलीवुड मे मेकअप आर्टिस्ट भी ऐसी नेचुरली लाल नही कर पाते होंगे!
मेस मे महाराज जी कुछ भी बनाए, पूड़ी हो या सत्तू हो व भिंडी के सब्जी मे भी आलू हो, कोई फर्क नही पड़ रहा! महाराज जी भी प्यार से खिलाते है अचानक दाल मे लाल मिर्च मिलती है, मिर्च का रंग लाल मतलब लाइकोपिन! लाइकोपिन का स्ट्रक्चर? दिमाग के होश गुम!
रात के बारह बजे सूसू करने के लिए उठते है तो मच्छर भिनभिना रहा है, पता चला कि वो "साइमन्ड फ्रॉड की साइकोएनाल्सिस थ्योरी" सुना रहा है! नित्य क्रियाकर्म करके वापस रूम मे आने पर पता चला कि अभी जो युरिया निकाल के आ रहा हूँ वो तो लैब मे बना सबसे पहला कार्बनिक पदार्थ है!
धन्य हो सेमेस्टर सिस्टम!
तुम जब आती हो तो बच्चों को कल्लो सी उनकी मिस वर्ड को भी भुला देती हो!
यही है यहाँ का एग्जाम सीजन!
सभी को ऑल द बेस्ट और फेसबुक की प्रोफाइल पिक की तरह मुस्कुराते रहिए! बहुत ज्यादा पढ़ने वालों के लिए श्री कलाम जी द्वारा एक संदेश, "कुछ समय गपशप मे भी दीजिए, क्लासें बंक करना भी सीखिये, मेरी प्रॉक्सी भी मारिए, क्योंकि एडल्टहूड मे यही सब याद आयेगा, नंबर व ग्रेड नहीं!"
©राहुल

Thursday, 9 August 2018

दूरियां कभी दायरा नहीं बढ़ाती,
हाँ, समय जरूर दोहराता है,
लेकिन नहीं आती हैं वापस,
बचपन की वो नादानियां.....
हॉस्टल की जिंदगी है,
कहीं एकांत छुटपुट है तो,
कहीं जी भरके शोर,
परिसर के इस विशाल महल में,
यूं तो जिंदगी नहीं होती बोर....
लेकिन मम्मी व बापू की यादें,
जब दिल चीरने लगती हैं,
तब मेरा दिल खोजने लगता है,
पापा के बाजार से घर आते ही,
झोले टटोलने लगता है....
हॉस्टल मेस की मटर पनीर भी,
माँ की हथपुइया रोटी के सामने क्या है,
पास पड़ोस की मुंह बोली चाची,
दादी मामी व मझली काकी,
इनके सामने मेरे आधुनिक दोस्त क्या हैं....
कुछ अपने जो बचपन में,
सबसे अच्छे दोस्त हुआ करते थे,
जात पात से दूर हटकर,
दिल से अपने हुआ करते थे....
उन दिनों जब  भारी बीमारी,
मां के फूँक से उड़नछू हो जाये,
वहीं आज मामूली चोट पर,
स्टूडेंट हेल्थ सेंटर नजर आये....
नाच नौटंकी व ढोल मदीरे,
जहाँ मौज मस्ती संग धूम मचाएं,
अब मॉल कैफे व रेस्तरां संग,
मौज मस्ती में याद लंका आये....
पौ फटते ही घूमा करते थे जब,
गाँवो के गलियारों में,
अब देर रात तक बतियाते हैं,
होस्टल के कैदखानो में....
दिन बीत जाते हैं,
बंद मुट्ठी से गिरते रेत की तरह,
चेहरे पर झुर्रियां लिए,
माँ टकटकी लगाए आज भी,
बंद किवाड़ो से राह तकती रहती हैं,
बाहर पढ़ने गये अपने लाल के,
सलामती की दुआ करती रहती हैं....
दूरियां कभी दायरा नहीं बढ़ाती,
समय जरूर दोहराता है,
लेकिन नहीं आती हैं वापस वो,
बचपन की वो नादानियां.....


Thursday, 5 July 2018

शिक्षा व्यवस्था : समस्या व समाधान

शिक्षा मानव का सर्वांगीण विकास करती है, केवल डिग्री व कॉलेज के साथ नाम जुड़ना ही शिक्षा नहीं है! यहां पर आज हम स्कूल व कॉलेज मे दी जाने वाली शिक्षा की विभिन्न पहलुओं व समस्याओं को देखेंगे!

  स्कूल में पढ़ाई करके अच्छे नंबर लाओ, फिर कॉलेज से डिग्री लेकर जॉब के लिए भागदौड़, किसी तरह जॉब मिल गई तो शादी - बच्चे, सास- ससुर और फिर घर गृहस्थी को संभालना होता है! क्या यही हमारी सफलता का मायने हैं? हम एक मशीन बन कर रह गए हैं! स्कूल में अगर किसी बच्चे से एक नंबर भी आपका कम आ गया तो पहले टीचर आपको फेल व गधा घोषित कर देगा! "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता" और फिर घर आने पर माता-पिता कहते हैं "इतनी फीस हो कोचिंग के बावजूद एक नंबर कैसे कम आ गए" कहीं कहीं तो स्कूलों में इतनी इतनी बुरी स्थिति है कि अगर अध्यापक द्वारा बताए गए उत्तर से अलग आपने सोच कर अपने शब्दों में उत्तर लिख दिया तो "बहुत होशियार बनते हो चलो मेरे प्रश्नों का जवाब दो" ऐसी बोलते हैं! दूसरों बच्चो के साथ उनकी तुलना की जाती है! आप अपने मन में प्रश्नों को सोच कर उसका जवाब अपने शब्दों में दे नहीं सकते हो! मतलब यहां पर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन नाम की चीज ही नहीं है!  दूसरा पहलू एसाइनमेंट है जिसमें अध्यापक अापको टॉपिक बोल देते हैं और आपको उसके बारे में अपने शब्दों मे लिखना होता है! बच्चे अक्सर घर में बड़े भाई या बहन से वह एसाइनमेंट बनवा लेते हैं या जो खुद बनाते हैं वह इंटरनेट से कॉपी पेस्ट कर लेते हैं! कभी-कभी तो दुकानदार को पता होता है कि एसाइनमेंट कौन से टॉपिक पर बनता है तो वह बच्चों से मोटी रकम वसूल कर उनको बना-बनाया असाइनमेंट दे देते हैं, बच्चा वही जमा कर देता है! शायद ही कोई विद्यार्थी हो जो खुद से सोचकर बनाता हो! यहां भी इनोवेशन नाम की कोई चीज ही नहीं है!
  एक ओर सरकार कहती है कि सरकारी स्कूलों मे बच्चे पढ़ते ही नहीं है तो इसका भी कारण है: हम केवल उत्तर प्रदेश राज्य के आंकड़ें ले तो करीब 47000 स्कूलों मे विद्युतिकरण ही नहीं हुई है, 3500 स्कूलों मे शुद्ध पेयजल नहीं है, 36000 स्कूलों मे डेस्क व बेंच नहीं है! प्राइवेट स्कूल अत्याधुनिक सुविधाओं व तकनीकी से सुसज्जित रहते हैं इसीलिए बच्चो व माता पिता को आकर्षित करने मे इसीलिए बहुत आगे रहते हैं!
  हमारे यहां तो कहीं-कहीं इंटर तक के स्कूलों मे लैब भी नहीं होती! इंटर की बात छोड़ो MSc व MTech के लिए भी प्रैक्टिकल में वही सिखाते हैं जो मशीन वर्षों पहले बंद हो जाती है मतलब कि अगर हम उसके बारे में जानकारी ले लेंगे तो उसका हम कहीं उपयोग कर ही नहीं सकते हैं! स्कूल की बात छोड़ो, बैंकिंग सेवाओं जैसे ATM व अन्य सेवाओं जैसे साइबर सुरक्षा मे Windows XP  का उपयोग होता है. जबकि माइक्रोसॉफ़्ट ने Windows XP को बहुत पहले बंद कर दिया है!
  प्रतिभा पलायन भी एक बड़ी समस्या है हमारे यहां प्रतिभावान बच्चों के लिए माहौल ही नहीं होता है! IIT, AIIMS, IIM व उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनको मजबूरन यहां से विदेशी विश्वविद्यालय में जानने के लिए मजबूर होना पड़ता है क्योंकि हमारे यहां उनके शोध के लिए संसाधन व माहौल ही नहीं है, इस समस्या को रोकने के लिए सरकार अब ध्यान देती दिख रही है लेकिन जमीनी स्तर पर उसका बहुत ही कम असर दिख रहा है!

 आज दशा इतनी खराब है कि कॉलेज पास आउट स्टूडेंट खुद कंपटीशन फॉर्म नहीं भरना नही जानते, बैंकों में सामान क्रियाकलाप नहीं कर सकते हैं, खुद फैसला लेने में उनका विश्वास डगमगा जाता है! बेरोजगारी की हालत इतनी खराब है कि जब कोई ग्रुप D की नौकरी जैसे चपरासी व सफाई कर्मी की भर्ती निकलती है तो MA, MBA, PhD व MTech पास आउट बच्चों के लिए फॉर्म भरना पड़ता हैं क्योंकि हमारा स्कूली सिस्टम ऐसा हो चुका है कि रट्टा मार मार कर तो हम पास हो जाते हैं  लेकिन वही कंपटीशन व प्रैक्टिकल में आते ही हमारे तोते उड़ जाते हैं क्योंकि हमारी जड़ ही खराब है! हमारे यहां कक्षा आठवीं फेल व हाईस्कूल फेल शिक्षा मंत्री बनाए जाते हैं, ये लोग शिक्षा का मतलब ही नही जानते होंगे!
  अभी कुछ दिन पहले किसी साहित्यकार शिक्षाविद ने एक बहुत ही अच्छी बात कही थी  "जब तक हमारी शिक्षा मातृभाषा में नहीं होगी तब तक हमारे देश में इनोवेशन नहीं आ सकता क्योंकि अगर हम दूसरी भाषा में कोई कहानी पढ़ते हैं तो दूसरों को सुनाने में हम वही कहानी उन्ही शब्दों के साथ दोहरा देते हैं लेकिन अगर अपनी मातृभाषा में कहानी सुनते हैं तो दूसरों को वही कहानी समझाने के लिए हम नए नए शब्द विकसित करते हैं तो ऐसे ही इनोवेशन का जन्म होता है!"
 हमारे देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति लागू है अंग्रेजों को भारत छोड़े 70 साल हो गए लेकिन आज भी उनकी नीति हमारे देश में लागू है मतलब एक तरह से आज भी हमारे यहां शैक्षिक गुलामी है! उनका मकसद एक ही था "फूट डालो और राज करो!" आज विभिन्न कानवेंट स्कूल में टीचर बच्चों को अंग्रेजी को रट्टा मारकर पढ़ाने पर तुला हुआ है, अंग्रेजी बोलना अच्छी बात है लेकिन अंग्रेजी के चक्कर में हिंदी बोलने में शर्म आती है तो यह विकट समस्या है! भाषा केवल ज्ञान का माध्यम है लेकिन हम इसी को ही ज्ञान मान बैठते है!
 आज हम केवल शरीर से भले भारतीय हैं लेकिन चिंतन, मनन, अन्वेषण, विश्लेषण, सर्जनात्मकता उत्सुकता, उपकारिता, अध्यात्मिक संस्कृति व धैर्यशीलता हमारे अंदर नहीं है!
   शिक्षा का बजट हमारे यहां एक परसेंट ही होता है! हमें अपनी शिक्षा नीति स्वयं सुधारनी होगी हमें अपनी आवाज इतनी बुलंद करनी पड़ेगी कि शिक्षा मंत्रालय के पदों पर बैठे राजनेताओं को अकल आ जाए जिससे उनको सोचने पर मजबूर होना पड़े!

 यहां कुछ उपाय हैं जिनकी मदद से हम शिक्षा व्यवस्था को सुधार सकते हैं-

1. एक शिक्षा पाठ्यक्रम एक विद्यालय पद्धति लागू होना चाहिए!
2. हर स्कूल में एक लैब का होना बहुत जरूरी है!
3. स्कूल में एक लाइब्रेरी होना चाहिए जहां बच्चे अपनी रुचि के हिसाब से बिना रोक-टोक कोई भी किताब पढ़ सकें ताकि उनको अपनी रुचि पता चले और  वो अपने आप खुद का मूल्यांकन कर सके!
4. हर स्कूल मे एक काउंसिलिंग के तौर पर एक मनोवैज्ञानिक होना चाहिए जहां बच्चे अपनी समस्या को मित्रवत बता सके!
5. कई सारे NGO जो शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत अनोखा काम करते हैं, उनको स्कूलों से जोड़ देना चाहिए. इससे स्कूल व NGO दोनो को लाभ मिलेगा!
6. कौशल आधारिक तकनीकी शिक्षा देने से कई लोगों को स्वरोजगार मिलता है, ये शिक्षा खासकर ग्रामीण तबके के लोगों को दी जानी चाहिए जिससे बेरोजगारी अपने आप खत्म हो जायेगी!
7. कक्षा में हर छात्र को संबोधन का अवसर मिलना चाहिए, इससे छात्र का आत्मविश्वास मजबूत होता है!
8. हमारे यहां जो कक्षा 8 तक फेल न करने की नीति है बहुत ही खराब है, फेल न होने का डर रहता नही तो बच्चा कैसे पढ़ेगा!
9. हर वर्ष अभिभावक - अध्यापक का मिलन समारोह होना चाहिए, जिसमे अभिभावक को समझाना चाहिए कि नंबर तो महज एक नंबर है, आप बच्चो की शैक्षिक गुणवत्ता पर ध्यान दीजिए, इसी गुणवत्ता के आधार पर प्रतिभा सम्मान समारोह भी होना चाहिए!
10. "स्वास्थ्य ही हमारा सबसे बड़ा धन है!" शिक्षा हमारे लिए जितना जरूरी है, खेल कूद भी उतना ही जरूरी हैं! अगर विभिन्न अवसरों पर स्कूल की तरफ से खेल का आयोजन किया जाए तो बच्चो को तनावमुक्ति व आनंद मिलता है साथ ही उनके अंदर टीम भावना जैसे गुण विकसित होता है!


 स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार कहा था कि शिक्षा मानव को पूर्ण बनाता है, पूरे संसार में मानवता के संदेश को प्रचारित करने के लिए शिक्षा की अलख जोर शोर से जलानी पड़ेगी! हम सबकी गलती के कारण ऐसे हालात उत्पन्न हुए है, ये हमारी आपकी समस्या है अतः आवाज हमको आपको उठानी पड़ेगी! हमारी सरकार से ये गुज़ारिश है कि भारतीय संविधान मे आजादी से लेकर अब तक कई संशोधन हो चुके हैं तो क्या भारत को पुनः जगद्गुरु बनाने के लिए एक और संशोधन नही हो सकता! मात्र संशोधन ही काफी नही है जमीनी स्तर पर भी हकीकत दिखनी चाहिए!


राहुल पाल  (काशी हिंदू विश्वविद्यालय)

Monday, 2 April 2018

ये काशी हिंदू विश्वविद्यालय की बात प्रिये

तुम केमि्स्ट्री की व्यस्त प्रैक्टिकल सी।
मै सोशल का मनोविज्ञान प्रिये।।
तुम सुंदरी हो विज्अुल आर्ट की।
मै ज्ञानी हूं विधि संकाय प्रियेे।।
तुम मीठी वीटी की लौंगलता सीे।
मैं मैत्री की ठंडी चाय प्रिये।।
तुम अनुशाशन हो गर्ल्स होस्टल की।
मै बिरला का संग्राम प्रिये।।
तुम बीएचयू की कुलगीत सी।
मै एलबीस सा बदनाम प्रिये।।
मन मेरा भी अब शांत सा है।
जैसे मैदान-ए-एजी फार्म प्रिये।।
सांसो की माला सेंट्रल लाइब्रेरी।
रहे तुम्हारा प्रतिष्ठान प्रिये।।
कभी कभी मन करता है।
करलू तुमपर विश्वास प्रिये।।
पर तुम्हारी बातों में न आती।
मधुवन सी मिठास प्रिये।।
दिल जर्जर सा हो गया है।
जैसे दीवारे ब्रोचा छात्रावास की।
नही रही अब वही पुरानी।
एमएमवी वाली बात फिर।।
कहा गया वो जून जमाना।
कहा गया वो अफसाना।।
समय हुआ दीदार किये हुए।
तेरी पुरानी मुस्कान की।।
माना समय बदलता है।
इसमें कोई दो राय नही।।
पर जो कल तक अपना था कहते।
आज उनसे बढ़ कर कोई पराय नही।।
सदैव रहेगी ये काहिविवि।
याद हमेशा जीवन में।।
जीवन की सच्चाई से मिला।
जैसे गंगा वरूणा संगम में।।
समय रेत सा बहता जाता।
गंगा की पावन धारा में।।
खड़ा रहा मैं,रहा देखता।
करके सब व्यारा नारा मैं।

Monday, 8 January 2018

हमारे देश में जाति व्यवस्था

हमारा भारतवर्ष एक लोकतांत्रिक देश है, मतलब की यहां की जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है. हमारे  समाज की सबसे बड़ी  कमजोरी यहां की जाति व्यवस्था है. क्योंकि अगर समाज में जाती रहेगी तो उसका असर हमारे दैनिक जीवन पर जरुर देखेगा उसको कोई रोक नहीं सकता है और हमारे यहां के राजनेता भी इसी व्यवस्था का लाभ उठाते हैं और उनको हमेशा जाति व्यवस्था में  फसाए रहना चाहते हैं. इस सत्य को हमें कड़वे घूंट के रूप में पी लेना होगा कि जाति व्यवस्था को इस समाज से खत्म करना ही होगा क्योंकि इससे कभी फायदा नहीं हुआ है हमेशा इससे समाज में दरार ही पैदा हुई है.
‎ इतिहास इस बात का साक्षी है, अभी हाल ही में हरियाणा में जाट आंदोलन, राजस्थान में गुर्जर, गुजरात में पटेल आंदोलन, राजस्थान में पद्मावती के विरोध में राजपूत लोगों का पूरे देश में विरोध, कर्नाटक में लिंगायत लोगो का विरोध.
‎आज के आंदोलन से केवल राजनेताओं को ही फायदा हुआ है इससे समाज में बंटवारा बहुत बढ़ गया है.
‎ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15  मैं यह उल्लेख किया गया है कि
‎"धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध"
‎ कब तक यह भेदभाव चलता रहेगा,
‎कब तक यह जातिवाद जातिगत दंगे होते रहेंगे,
‎कब तक नेता लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए जाति का सहारा लेंगे
‎और कब तक यह वोटों की राजनीति जाति से तय होगी
‎हमारे यहां जाति व्यवस्था जाति का कीड़ा बहुत अंदर तक घुस चुका है उसको खत्म करना ही होगा नहीं तो पूरे देश को खोखला कर देगा. अगर हमारे देश में जाति व्यवस्था को ही खत्म कर दिया जाए तो सारी समस्याएं हल हो जाएगी, कोई जाति नहीं रहेगी ना ही कोई जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करेगा. केवल धर्म रहेगा और उसी धर्म में हम लोग रहेंगे, क्योंकि जब तक जाती रहेगी तब तक सामाजिक सद्भावना लाना नामुमकिन है.

Wednesday, 3 January 2018

सुनो ना,
‎चलना कभी साथ में अस्सी घाट
‎वहां बैठकर करेंगे दिल की बात
‎और जलक्रीड़ा  करते हुए तुम्हें
‎"मोहतरमा" से "प्रियतमा" ना बनाया तो
‎"राहुल" मेरा नाम नहीं
सुनो....
एक पौधा लगाउँगा
तेरे नाम का
अपने आँगन में
सूरज की लालिमा
आयेगी तेरे ऊपर से होते हुए
मेरे आँगन में

Tuesday, 2 January 2018

कल तेरे शहर से

कल तेरे शहर से क्या गुजरा
मुझे तुम्हारी बहुत याद आई
धुंध में डूबे शहरों की
सूनसान गलियां
बंद किवाड़ वाले दरवाज़े
और घरों की छतों पर
गीला कपड़ो के सिवाय कुछ नहीं
दुपहरी की छुपी छुपा धूप
हर बार तेरी याद दिलाते रहे
धान के खेत की ये हरियाली
मानो तेरे इंतजार मे हो
एक अजीब सा सन्नाटा
पसरा है मेरे गाँव मे
मैं अपना गाँव छोडकर आया
तेरे बनारस शहर मे
तेरे से कब मेरा हो गया
पता ही नही चला
याद है वो पल
अस्सीघाट की सीढ़ियो
पर जब हम तुम बैठे थे
एक खंडहर का
गुंबद था मेरे सामने
गंगा जी बह रही थी खंडहर के बाजू से
हमेशा की तरह ख़ामोश थे तुम
रेंगती हुई नाव मानो
दुखों का एक सिलसिला थी
और तुम चले गये
शाम बुझ रही थी और
लौटना की कोई आहट नहीं थी कहीं....