Thursday, 28 December 2017

हमारी न्यायवस्वस्था

गीता की कसम,
हाथों में तराजू
आँखो मे पट्टी बांधी है.
लक्ष्मी जी की इज्जत है
चंद घोटालेबाजों के हाथों में
ये न्यायवस्वस्था की कैसी आंधी है
अगर इसी तरह होते रहे फैसले
तो कोई न्यायालय नही जायेगा
गरीब जनता की होगी चीख
न्यायपालिका से भरोसा उठ जायेगा
सब खुद ही आपस मे फैसला कर लेंगे
खुद ही आपस मे सजा  दे देंगे
रामराज्य से जंगलराज आ जायेगा
चंद पैसे और माननीयों को छोड़ो
न्याय की देवी की आँखो मे आंसू तो देखो
करते वक्त अपनी कलम से फैसला
माँ भारती की आन बान व शान तो देखो

वंदे मातरम

वह चश्मे वाली लड़की

वह चश्मे वाली लड़की थी
जो मेरे साथ पढ़ती थी
चुपके चुपके हौले हौले
मुझको देखा करती थी
खामोश लफ्ज थे मेरे
वह बकबक बोला करती थी
गंगा की पवित्रता थी उसमें
और मिश्री जैसी मीठी थी
धीमे धीमे खामोशी से
जब वह बातें करती थी
रिमझिम जैसी बातों में से
एक ग़ज़ल निकला करती थी
तनहाई में गुनगुनाता हूं वो गजल
जब वह याद आती थी
उदास होना तो मेरा नसीब है
वही सफर वहीं मंजिल थी
क्या लिखूं अब उसके बारे में
यौवन की वो एक ज्वाला
मेरे प्रेम की एक प्याला थी
वह चश्मे वाली लड़की थी
जो ‎मेरे साथ पढ़ती थी...

Friday, 3 November 2017

प्रेम

कौन जान सकेगा कि
पा गया मै कितना कुछ
उन चंद लम्हों में
जब तुम बैठी थी मेरे पास
और मै......
एक टक निहार रहा था तुझे
शायद मै ढूंढ रहा था
तुझमे अपनी "प्रियतमा"
पर मेरे चेहरे की लकीरों में
तुम्हारी उदास आँखें
भटक रही थी..
और मैं .......
उन चंद लम्हों को समेट लेना चाहता था....
सदियों की मेरी प्यास आज
भींग रही थी
बूंद बूंद एहसास में
तुम्हारे मिलन के
चंद लम्हों के पल को
अपने दिल मे सोख लेना चाहता था....
अपना प्रेम .....

Tuesday, 17 October 2017

दलाली


"सर, रेप केस आया है।"मुंशी ने कहा।
"आहा..."दारोगा के चेहरे पर चमक आ गई।
"दुष्कर्मी मालदार आदमी है। उसका पैरवीकार भी आ गया सर।"
"मूँछ पर ताव देकर,"बोहनी अच्छी है। लाख -डेढ़ लाख असानी से मिल ही जाएगा।"
"पीड़िता स्कूली ड्रेस पहने हुए अर्धमूर्छित अवस्था में है। कुछ बोल नहीं रही है सर।"
"हूं......सामने लाओ उसे।"
उसे देख दरोगा जी की चीख निकल गई।"कमीने छोड़ूगा नहीं। मुंशी जी जोरदार धारा लगाओ। साला बेल होने न पाए।"
"सर,तीन लाख तक देगा।"
"आँखें तरेरते हुए,"दलाली तो बंद करो।"
"सहमते हुए,"क्या हुआ सर!"
"पीड़िता मेरी बेटी है।"
"आश्चर्य से,"क्या....."
सम्हलते हुए,"आपके पूर्व निर्देशानुशार अनाम लड़की के नाम हलकी एफ.आई.आर.लिखी जा चुकी है। कॉपी जिला एस.पी.को ऑनलाइन भेजी जा चुकी है।"
जोरदार चीख के साथ टेबल पर सिर पटकते हुए,"साले हम लोग निर्दयी राक्षस हैं।"और फुटकर रोने लगा।"

Saturday, 30 September 2017

हमारी मानसिकता कैसी है...

चार दोस्त बैठकर बात कर रहे थे.....
# बलात्कार के बारे मे चर्चा चल रही थी......
एक बोला- साले हरामी है जो रेप करते है सालो को लटका दो....
दूसरा बोला -अरे हाँ यार .....मैने भी न्यूज मे देखा था ऐसे को तो कुत्ते कि मौत मारना चाहिये...
तीसरा बोला-अबे तुने सूना के नही कल अपने यहा भी एक बलात्कार का केस हुआ....
चौथा -अरे क्या बात करता है कहा पर ? और मुझे नही पता...
पहला-अरे हाँ ! सुना तो मैने भी कौन थी वो लड़की....
चौथा-अबे वो वर्मा कि लड़की नही है अबे वो ही जिसका दुप्पट्टा खींचकर भगा था मैें.....
दूसरा-अब हां वो क्या नाम था उसका यार ... हा याद आया रीता ना ?
तीसरा-हाँ वो रीता जिसका चक्कर उस राहुल के साथ था , ....नहीं बे वो मानी कहा थी
चौथा-हाँ यार और उसी राहुल पर बलात्कार का इल्जाम भी है.....
पहला-क्या बात करता है ? अरे पर मैने तो सुना था कि वो एक दूसरे के दोस्त है....
तीसरा -पता नही यार सुना तो मैने भी था पर अपने को क्या यार....
चौथा -अबे मैने उसे एक बार प्रपोज किया था साली ने मना किया था अब भुगत.....
पहला-क्या सही मे अरे तब तो ठीक हुआ अब पता चलेगा अच्छा कौन बुरा कौन.....
तीसरा -चल छोड ना फालतू कि बात को जैसी थी वैसा मिला अब अपने को क्या वो जाने उसका काम जाने.....
"अबे उधर देख जल्दी तुम्हारी बातो के चक्कर मे आयटम निकल गया"
"अबे तुने इसे प्रपोज करा कभी ?"
पहला-अबे एक बार किया तो है अभी तक जवाब आया नही.....
तीसरा-तुझे तो मना ही करेगी बे.....
पहला-कसम से अगर मना किया तो एक दिन चपेट मे ले लूँगा फिर क्या उखाड लेँगी.....
चौथा -पागल है क्या साले फट जायेगी अगर केस हुआ तो ?
पहला-अरे एक बार मे ना मानी तो साली के चेहरे पर तेजाब फेक दूंगा फिर बैठी रहेगी जीँदगी भर.....
(फिर एक जोरो कि हँसी कि आवाज आयी)
कुछ दिनो बाद खबर थी अखबार मे वर्मा कि जी कि लड़की ने खुदखुशी कि और अरोपी नाबालिग साबित हुआ , बाल सुधार गृह भेजा गया.....
नीचे खबर थी आज एक लड़की पर तेजाब फेका गया आरोपी जमानत पर रिहा ....
( ये हमारे समाज के युवा वर्ग की सोच और वर्तमान कानून की हकीकत है.... )
ऐसे में कहा लेकर जाए अपनी बेटिया कैसे उन्हें बचाये

Tuesday, 5 September 2017

स्त्री

एक स्त्री अगर ठीक वही दिखे जो वह है...तो वह एक सवाल है. एक ऐसा सवाल जिसके जवाब तक सवाल को खुद ही पहुँचना होता है. कोई भी और न उसका जवाब ढूंढ सकता है, न ढूँढना चाहिए ही.
ज़ाहिर है इस जवाब की कोई एक शक्ल भी नहीं होती!
...स्त्री रुपी इस सवाल से समाज द्वारा पूछे जाने वाले सवाल कुछ यूं रहे-
“उम्र क्या है आपकी?”
-“सैतींस साल.” (...और पूछने वाले की नज़रें ठहर जाएँ आप पर, ज्यों आपने कम उम्र बताने के सामाजिक नॉर्म का भयंकर रूप से अतिक्रमण करते हुए अपनी उम्र दस साल ज्यादा ही बता दी हो.)
-“अच्छा! लगतीं नहीं हैं.”
“हाँ, लगती नहीं पर हूँ, पर हूँ इतने की ही.”
“शादीशुदा हैं?”
“जी.”
“सिन्दूर, बिंदी, पायल, बिछुआ...कुछ भी नहीं पहना...कुछ तो पहनना ही चाहिए, शादीशुदा और ग़ैर शादीशुदा होने में फ़र्क तो दिखे”
“हाँ, पर मेरे पति भी ऐसा कुछ नहीं पहनते जिससे उनके शादीशुदा या गैरशादीशुदा होने का फ़र्क दिखे.”
“बच्चे कितने हैं?”
“एक भी नहीं.”
“शादी को कितने साल हो गए?”
“जी, छः साल.”
“अच्छा!!”
“अब तो बच्चा कर लेना चाहिए आपको...(सहानुभूति की एक नज़र के साथ.)”
“हाँ, पर इस बात पर फ़ैसले का हक़ तो विशुद्ध रूप से हमारा है...क्यों?”
“ह्म्म्म...(अपने तरकश के तीर के चुक जाने की मायूसी के साथ)”...
...तो ये सवाल एक बानगी भर हैं...रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में एक महिला जो समाज के खाँचे में फिट नहीं है अपनी उपस्थिति से अपने बेहद नज़दीकियों सहित दूर-दराज के समाज के लिए भी एक सवाल ही है...एक उलझा हुआ सा ऐसा सवाल जो मुसलसल चुभता है कहीं गहरे तक...लिहाज़ा टीस भी गहरी देता है. पर स्त्री बेफ़िक्र है, उसे फ़र्क नहीं पड़ता कि उसकी बेसाख्ता हँसी पर उठ जाने वाली सवालिया निग़ाह, या फिर उसके ड्रेसिंग सेन्स को सराहने से ज़्यादा उसकी उपादेयता पर उठ जाने वाली टेढ़ी नज़र उसे कैसे देखती है? उसके पढ़ने-लिखने सहित खाने-बनाने-खिलाने की तमाम आदतों को भी संशय से देखने वाली दृष्टि या फिर रात के अंधेरों को धता बताते उसके क़दमों की आहट से हिल जाने वाला दंभ (जिसका बड़ा हिस्सा पुरुषों से ज्यादा पुरुषवादी स्त्रियों का हो.) उससे क्या अपेक्षा रखता है? उसे नहीं फ़र्क पड़ता कि उसके पीछे, लोग उसे ‘अच्छी स्त्री’ के तमगे से नवाजते हैं या नहीं...उसे नहीं फ़र्क पड़ता कि उसकी राजनीतिक दृष्टि से उसके आस-पास का समाज सहमत है या नहीं.
...हाँ, उसे फ़र्क पड़ता है...उसे फ़र्क पड़ता है तो सड़ चुकी उन रूढ़िवादी मान्यताओं से जिनसे ज़िन्दगी के हर क़दम पर लड़ने को वह प्रतिबद्ध है...उसे फ़र्क पड़ता है तो उस ईमानदारी से जो उसके एक पत्नी, बेटी, बहन, दोस्त, शिक्षक या फिर एक मनुष्य के बतौर बने रहने के लिए ज़रूरी है. उसे इस बात से ज़रूर फ़र्क पड़ता है कि उसके होने की अर्थवत्ता इस समाज की ख़ुशी के लिए तमाम जायज़-नाजायज़ नियमों को मान लेना भर नहीं है...तभी तो उसके होने को इस समाज के परम्परागत नियमों के लिए चुनौती बन जाना कहीं पसंद है.
...तो वह हँसेगी, इस बात से बेपरवाह कि उसकी हँसी के मायने तलाशने में दुनिया कितना प्रयत्न करती है? ...वो रोएगी, जब-जब टूटेगी...बिना इस बात की परवाह के कि उसे कमज़ोर होने का तमगा न मिल जाय समाज से...और हर बार जब वो गिरेगी, तो किसी के आने के इंतज़ार के बगैर खुद की कोशिशों से उठेगी...फिर से खड़ी होगी...वह टूट कर प्यार करेगी, और इस प्यार का इज़हार करेगी...बिना इस बात की परवाह के कि बकौल समाज उसमें ‘स्त्रीयोचित गुणों’ का अभाव है. क्योंकि सैतींस साल की इस ज़िन्दगी ने उसे यही सिखाया है कि जो तुम्हें दिल से सही लगे वही करो और वही दिखो...इस करने और दिखने का मूल्य बहुत बहुत ज्यादा है...ये रास्ते तकलीफ़देह हैं...लेकिन सुकून भी इसी रास्ते पर है. सच को सच कहना सिर्फ इसलिए बंद मत कर दो कि झूठ तारी है समाज पर...समय पर. क्योंकि अँधेरा कितना भी घना क्यों न हो रौशनी की एक छोटी सी किरण भी उसके तिलिस्म को तोड़ने का एक मजबूत ज़रिया होती है.

Sunday, 27 August 2017

विदाई


एक फौजी की छुट्टियां खत्म होने पर घर से विदाई के भावुक क्षण
.
"बैग की बाहर वाली चैन में टिफिन रखा है, रस्ते में खा लेना याद करके, अबकी बार भूले तो लड़ाई हो जायेगी हम दोनो की"-उसने गुस्से वाले अंदाज में बोला फिर अलमारी से कपड़े निकाल के सुटकेश में रखते हुये टॉवल को लम्बी सांस में सूंघा ओर उसको साइड में रखते हुये
"ये आपका यूज किया हुआ टॉवल मैं रखुंगी आपकी ख़ुश्बू आती रहेगी ।
नया टॉवल रख दिया है सबसे नीचे वाली तह में निकाल लेना जाके ।
पैकिंग खत्म हो गयी थी पर बैग को छोड़ने को मन नही कर रहा था , जैसे वो चाहती है उसे रोकना ,पर रोक भी नही सकती ,
इधर उधर तेजी से घूम रही है जैसे कुछ खोया है ओर किसी को बता भी नही सकती!
उसके पति ने कपड़े पहन लिये थे, और एक जूता भी । वो झट से बैठी ओर लैश कसते हुये, "और हां मुझे याद तो बिल्कुल भी मत करना, सारा काम करना होता है घर का,आप याद करोगे तो मेरा काम में मन नही लगेगा । फिर , आपकी मां को तो आप जानते ही हो , आपके जाते ही रोज लड़ाई करेगीं मुझसे । पर, आप चिंता ना करना वो कुछ बोलेंगी ,तो भी मैं सुन लुंगी।
आप बस अपना ख्याल रखना । हर तीसरे दिन बच्चो के जैसे जुकाम लगा लेते हो! ( आंसूओ की बारिश में जैसे जहाँ डूब जाये )
"शशशश् पागल रोते नही । तु एक # फौजी की बीवी है ,मैने मातृभूमि की रक्षा का प्रण लिया है और तुने मेरे प्रण के लिये अपनी जवानी को जलाना है, बोल साथ देगी ना मेरा ??
" (गले से लगाते हुये )"हाँ" रुंधे गले से (और वो उसका माथा चूम के कमरे से बाहर निकला ।
फिर वो भारी मन से रखने लगी अपने कपड़े, गहने ओर मेकअप वापिस संदूक में ,जो उसके, पति के पास होने पर ही सजते हैं ,ये फिर तभी निकलेगें जब वो अगली बार आयेगा!!
धन्य है फौजी और उनका परिवार

Sunday, 20 August 2017

लड़की और पुरुष की मर्दानगी

लड़की उम्र में बड़ी हो तो मर्दानगी को ठेस लगती है - लड़की लम्बी हो तो भी मर्दानगी को चोट लगती है - लड़की अधिक कमाती हो तो मर्दानगी हर्ट होती है - लड़की आर्ग्यूमेंटेटिव हो तो मर्दानगी को क्षति पहुँचती है - लड़की दो क़दम आगे चलने लगे तो मर्दानगी पर विराम लग जाती है - लड़की 'ना' कह दे तब तो मर्दानगी विध्वंश हो जाती है - बिना पूछे पत्नी किसी पुरुष दोस्त से बात कर ले तो मर्दानगी दाँत पीसने और मुक्का भींचने लगती है .... मतलब ये कि स्त्री पुरुषों से कमतर रहे, उनके नियंत्रण में रहे, उनपे निर्भर रहे और उनका एहसान मानती रहे तभी मर्दानगी साबित होती है, 'अब-ऐसा-नहीं-है' जैसी बातों में कोई दम नहीं ........ मर्दानगी (मैस्क्युलिनिटी) एक कुण्ठित श्रेष्ठताबोध है, इसका शारीरिक बल से कुछ भी लेना-देना नहीं, बल्कि ये मानसिक दुर्बलता है, रुधिर उग्रता है !!

ये कैसा प्यार?

ये कैसा प्यार______
‘’मुझे बड़ी उम्र की लड़कियां पसंद हैं इसलिए तुम्हें प्यार करता हूँ ”
तीस वर्ष की कमाऊँ युवती से बीस वर्ष के बेरोजगार युवक ने कहा |
लोग क्या कहेंगे ?हमारी जोड़ी देखकर हँसेंगे या नहीं ...|
मुझे लोगों की परवाह नहीं
--दस वर्ष के बाद मैं अधेड़ हो जाऊँगी तो क्या तुम मुझसे विरक्त नहीं हो जाओगे ?
“इतना नीच नहीं हूँ और प्रेम सिर्फ शरीर से थोड़े होता है शरीर तो बस माध्यम है आत्मा तक पहुँचने का ”
--तुम इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी-बड़ी बातें कैसे कर लेते हो ?
“खबरदार !जो मुझे कम उम्र कहा |मैं बुद्धि से मैच्योर हूँ ,तुमसे भी ज्यादा |कम उम्र की लड़कियां तो मुझे बच्ची लगती हैं |”
--फिर भी मैं उम्र में तुमसे बड़ी हूँ ...|
‘’एक थप्पड़ लगाऊँगा बच्ची सी अक्ल और चली हैं बड़ी बनने ....|”
और दोनों में दोस्ती हो गयी |दोस्ती प्यार में बदली और लड़की सपनें देखने लगी |लोगों ने कहा –लड़की चालू है बेचारे लड़के को फँसा लिया
लड़के के दोस्तों ने लड़के से पूछा –क्यों यार ,बड़े चर्चे हैं तुम्हारे शादी करोगे क्या उससे ?
लड़का हँसा--शादी और उस बुढ़िया से अरे बहती गंगा है हाथ धो रहा हूँ मुफ्त में माल और देह दोनों पा रहा हूँ बस |
और अपनी जरूरते पूरी कर रहा हूँ |

Friday, 4 August 2017

मां बाप

एक छोटा सा बोर्ड रेहड़ी की छत से लटक रहा था,उस पर मोटे मारकर से लिखा हुआ था.....!!
"घर मे कोई नही है,मेरी बूढ़ी माँ बीमार है,मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना,दवा और हाजत कराने के लिए घर जाना पड़ता है,अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल ले और पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें,साथ ही रेट भी लिखे हुये हैं"
और अगर आपके पास पैसे नही हो तो मेरी तरफ से ले लेना,इजाजत है..!!
मैंने इधर उधर देखा,पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले,दर्जन भर केले लिए,बैग में डाले,प्राइज लिस्ट से कीमत देखी,पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया वहाँ सौ पच्चास और दस दस के नोट पड़े थे,मैंने भी पैसे उसमे रख कर उसे ढक दिया।बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया,इफ्तार के बाद मैं और भाई उधर निकले तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी,दाढ़ी आधी काली आधी सफेद,मैले से कुर्ते पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था ,वो हमें देख कर मुस्कुराया और बोला "साहब! फल तो खत्म हो गए
नाम पूछा तो बोला अरसद हुसैन
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए...
चाय आयी,कहने लगा "पिछले तीन साल से अम्मा बिस्तर पर हैं,कुछ पागल सी भी हो गईं है,और अब तो फ़ालिज भी हो गया है,मेरी कोई औलाद नही है,बीवी मर गयी है,सिर्फ मैं हूँ और अम्मा..! अम्मा की देखभाल करने वाला कोई नही है इसलिए मुझे हर वक़्त अम्मा का ख्याल रखना पड़ता है"
एक दिन मैंने अम्मा का पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, "अम्मा! तेरी तीमारदारी को तो बड़ा जी चाहता है। पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नही देती,कहती है तू जाता है तो जी घबराने लगता है,तू ही बता मै क्या करूँ?"
अब क्या गैब से खाना उतरेगा? न "मैं बनु इस्राईल से हूँ न तू मूसा की माँ है."
ये सुन कर अम्मा ने हाँफते काँपते उठने की कोशिश की,मैंने तकिये की टेक लगवाई,उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों का प्याला बनाया,और न जाने अल्लाह से क्या बात की,फिर बोली...
"तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर हमारा रिज़्क हमे इसी कमरे में बैठ कर मिलेगा"
"मैंने कहा अम्मा क्या बात करती हो,वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है? और बिना मालिक के कौन खरीदने आएगा?"
कहने लगीं "तू फ़ज़्र की नमाज़ के बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस,ज्यादा बक बक नही कर,शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो"
ढाई साल हो गए है भाई! सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ शाम को ले जाता हूँ,लोग पैसे रख जाते है फल ले जाते हैं,एक धेला भी ऊपर नीचे नही होता,बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते है,कभी कोई अम्मा के लिए फूल रख जाता है,कभी कोई और चीज़! परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी साथ मे एक पर्ची भी थी "अम्मा के लिए"
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था अम्मा की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे काल कर लेना मैं आजाऊँगा,कोई खजूर रख जाता है , रोजाना कुछ न कुछ मेरे रिज़्क के साथ मौजूद होता है।
न अम्मा हिलने देती है न अल्लाह रुकने देता है,अम्मा कहती है तेरा फल अल्लाह फरिश्तों से बिकवा देता है।
आखिर में इतना ही कहूँगा की अपने मां बाप की खिदमत करो ,और देखो दुनिया की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती है ।

Monday, 31 July 2017

स्त्री: एक ताकत

स्त्रियों को ऊपर वाले ने छठी इंद्री (six sense) सोचने समझने की क्षमता इतनी अधिक दी है की वो किसी भी पुरुष की नजरों से अपने बारे में उसकी नीयत (द्रष्टि) को जान लेती है।
 यहाँ तक की अगर कोई उसे छुप कर भी घूर रहा हो तो उसे एहसास हो जाता है की कोई उसे देख रहा है।
ईश्वर ने उसे ये शक्ति इसलिए दी है की वो जान सके की कौन उसके लिए अच्छा है और कौन बुरा।
लेकिन ना जाने क्यों यही औरत, लड़की जब किसी पर विश्वास करती है तो उसकी छठी इंद्री की शक्ति कहाँ चली जाती है?
जो चीज़ सब को नजर आ रही होती है वो उसकी आँखों से कैसे ओझल हो जाती है?
और फिर कोई लाख उसे समझाए लेकिन उस की अक़्ल पर ऐसा पत्थर पड़ता है की उसकी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है।
उसे पैदा करने वाले माँ बाप, उसकी खुशियों का ख्याल रखने वाले भाई-बहन, अच्छा बुरा समझाने वाली सहेलियां और रिश्तेदार सब लोग उसे दुश्मन लगने लग जाते हैं और सिर्फ एक शख्स जो दिल में इरादा लिए हुए उसकी तरफ बढ़ रहा होता है वो उसे सच्चा लागता है। वो ये नही सोचती की इतने सारे लोग कैसे गलत हो सकते है और जो सारी दुनिया से छुप कर मुझसे सम्बन्ध रखना चाहता है वो कैसे अच्छा व्यक्ति हो सकता है?
फिर आखिर एक दिन पछतावा उसका मुकद्दर बनता है उसकी जिंदगी का एक हिस्सा बनता है !!
सुनो....
माँ बाप गलत फैसला तो कर सकते है लेकिन कभी गलत नही हो सकते।
वो हमेशा अपनी औलाद की भलाई ही चाहते है।
उन्हें कभी अपना दुश्मन न समझें।
अपने आपको अक़्ल मंद समझ कर अपनी दुनिया और अपनी आबरू, अपने भविष्य को बर्बाद मत करो।
समझदारी सारी उम्र के पछतावे से बचा सकती है।
याद रखें जो आपको हासिल करने की जिद में आज आपकी इज्जत की परवाह नही कर रहा, वो बाद में भी इज्जत नही दे सकता !

Sunday, 30 July 2017

ईश्वर कहां है..

ईश्वर कहां है....
पिछले दिनों में अपने दोस्तों के साथ सवेरे सवेरे श्री काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए गोदौलिया गया....
 1. श्री कालभैरव मंदिर
 2. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

कहते हैं अगर आपको बनारस में रहना है तब आपको काल भैरव के दर्शन करना चाहिए क्योंकि कालभैरव का आशीर्वाद से आपको बनारस में जिस काम के लिए आए हैं वह काम आसानी से हो जाता है, लेकिन मुझे यहां पर रहते हुए 1 साल से ज्यादा हो गए थे..
लेकिन इसे समय की व्यस्तता कहें या कुछ और मैं वहां जा नहीं पाया...
मगर लगातार मेरे दिमाग में यह बात आ रही थी कि ईश्वर कहां है..
मंदिर में जाते समय दुकानदार  चिल्ला रहे थे

प्रसाद ले लो. प्रसाद ले लो. जूता यहां रखो चप्पल यहां रखो अपना बैग या मोबाइल जमा करो....

बैग मोबाइल दो अंदर ले कर जा नहीं सकते थे अत: मैंने वहां जमा कर दिया
हम लोग ने गेट नंबर वन पर लाइन के लिए खड़े हो गए लाइन बहुत लंबी थी लेकिन भक्तों के उत्साह के सामने कुछ भी नहीं है
लेकिन अगर कोई एजेंट को ₹100 वा ₹200 दे दे तो उसको जल्दी दर्शन मिल जाता है और कोई अगर कोई VIP आ गया तो सॉरी लाइन खत्म....
फ्री दर्शन की लाइन वाले जैसे ईश्वर की भक्त ही नहीं है उनका  हृदय बहुत व्यथित होता है

फिर बात आती है प्रसाद  की 50 व 60 व ₹200 व  1000 जितना भी खर्चा कर लो धर्म के ठेकेदारों के लिए कम ही है
बहुत सारे पंडित या धर्म के ठेकेदार जो  सशुल्क  साक्षात दर्शन का ठेका ले रहे थे यह धर्म के ठेकेदार लोग कब समझेंगे कि इश्वर तो दिल मे होते हैं..ये तो दर्शनीय मूरत हैं...इश्वर कहां है मेरी ये खोज आज पूरी हुई..इश्वर अबोध बच्चों मे है..इश्वर फूलों में है..इश्वर सही नियत मे है..इश्वर हर जगह है